प्रशंसनीय भावना
एक सज्जनने जो महाराजा नाटोरकी प्राणलेवा बीमारीके समय उनके पास थे, उनके अन्तिम समयके दृश्यका निम्नलिखित वर्णन भेजा है:
ऐसी भक्ति, ऐसी मर्यादा और ऐसा त्याग अनुकरणीय है। शास्त्रों में व्यक्तिके मरणोपरान्त रोना वर्जित है। फिर भी हिन्दू घरोंमें बहुत कुछ रोना-धोना हुआ करता है। बहुत से स्थानोंमें तो मृत्युके पश्चात् परिवारवालोंका रोना एक रिवाज ही हो गया है और जहाँ रुलाई नहीं आती वहाँ भी रोनेका दिखावा किया जाता है। यह रिवाज असंस्कृत और अधार्मिक है और बन्द कर दिया जाना चाहिए। जिन्हें ईश्वरमे श्रद्धा है उन्हें मानना चाहिए कि मृत्यु संसारसे मुक्ति है; उन्हें उसका स्वागत करना चाहिए। जवानी और वृद्धावस्थाके समान ही यह परिवर्तन भी निश्चित ही है और इसलिए जैसे वृद्धावस्थाके लिए कोई शोक नहीं करता है उसी प्रकार मृत्युपर भी किसीको शोक न करना चाहिए।
अब भी लड़ रहे हैं
नेलौरकी खिलाफत समितिके मन्त्रीने तार द्वारा सूचित किया है :
यद्यपि में इस बातको अनेक बार प्रकट कर चुका हूँ कि इन झगड़ा-फसाद करनेवाले लोगोंपर मेरी बातोंका कोई असर नहीं पड़ता है। मुझे बीच-बचाव करनेके लिए कहना मेरे अभिमानका पोषण करना है। मालूम होता है कि आजकल उनका सितारा बुलन्द है। लेकिन शान्तिपूर्ण वातावरण उत्पन्न करनेकी दिशामें मेरा अभिमान कुछ भी नहीं कर सकता। मैं तो इन दोनों जातिके लोगोंको पंच निर्णय प्राप्त