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८३. भाषण: दक्षिण आफ्रिकी भारतीयोंसे सम्बन्धित प्रस्तावपर'

२५ दिसम्बर, १९२५

श्री गांधीने प्रस्ताव पेश किया:

कांग्रेस दक्षिण आफ्रिकी भारतीय कांग्रेसके शिष्टमण्डलका हार्दिक स्वागत करती है और वह दक्षिण आफ्रिकावासी भारतीयोंको आश्वस्त करना चाहती है कि जिन एक जुट शक्तियोंके कारण उस उप-महाद्वीपमें उनके अस्तित्वको ही खतरा है उनके विरुद्ध किये जानेवाले संघर्षमें कांग्रेस उनका पूर्ण समर्थन करेगी।

कांग्रेसका बुढ़ मत है कि प्रस्तावित विधान जो कि क्षेत्र संरक्षण तथा प्रवासी पंजीकरण (अतिरिक्त उपबन्ध) विधेयक (एरियाज रिजर्वेशन ऐंड इमिग्रेशन रजिस्ट्रेशन) (फरदर प्रोविजन) के नाम से पुकारा जाता है -- १९१४ में स्मट्स-गांधी समझौतेका उल्लंघन है, क्योंकि एक तो इसका स्वरूप जातीय है। और फिर इसका उद्देश्य न केवल भारतीय अधिवासियोंको स्थितिको १९१४ से बदतर बनाना है, बल्कि इसका उद्देश्य किसी भी स्वाभिमानी भारतीयके लिए उस देशमें रहना असम्भव बना देना भी है। कांग्रेसके विचारमें उक्त समझौतेका जो अर्थ भारतीय प्रवासियों द्वारा लगाया जाता है, यदि संघ सरकार उसे स्वीकार नहीं करती तो इस मामलेका उसी प्रकार पंच-फैसलेसे निर्णय होना चाहिए जैसा कि १८९३ में ट्रान्सवालके भारतीय प्रवासियोंके मामलेका हुआ था और जैसा कि १८८५ के कानून ३ को कार्यान्वित करते समय किया गया था ।

कांग्रेस इस सुझावका हार्दिक समर्थन करती है कि इस प्रश्नका निपटारा करनेके लिए गोलमेज परिषद् बुलाई जाये, जिसमें दूसरे लोगोंके साथ-साथ उप- युक्त भारतीय प्रतिनिधियोंको भी आमन्त्रित किया जाये और कांग्रेसका विश्वास है कि उपनिवेश सरकार इस सुझावको स्वीकार करेगी। यदि गोलमेज परिषद्- का और पंच-निर्णयका प्रस्ताव न माने जायें, तो कांग्रेसका विचार है कि इस विधेयकके संघ संसदमें पास हो जानेपर साम्राज्य सरकारको इसपर अपनी स्वीकृति नहीं देनी चाहिए।

पण्डित बनारसीदास चतुर्वेदीका मत था कि कांग्रेसन विदेशोंमें बसे भारतीयोंकी दुवंशाकी उपेक्षा करके निन्दनीय काम किया है, वे चाहते थे कि विभिन्न नेता उनके

१. कानपुर में हुई विषय समितिको बैठकमें।