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दक्षिण आफ्रिकाके सत्याग्रहका इतिहास

होती गई त्यों-त्यों उस संघर्षका अन्त निकट आता गया। फिर इस युद्धमें मैंने यह भी देखा कि ऐसे निर्दोष, निःशस्त्र और अहिंसक युद्धमें ऐन मौकेपर अनायास ही आवश्यक साधन जुट जाते हैं। इसमें बहुतसे स्वयंसेवकोंने, जिन्हें मैं तबतक जानता भी नहीं था, अपने-आप सहायता दी । ऐसे सेवक प्रायः निःस्वार्थ होते हैं। वे इच्छा न होनेपर भी अप्रकट रूपसे अपनी सेवाएं दे देते हैं। उनकी ओर कोई ध्यान भी नहीं देता और न उन्हें कोई प्रमाणपत्र देता है। कुछ सेवक तो यह भी नहीं जानते कि ईश्वर उनके ऐसे अमूल्य कार्यको अपनी पुस्तकमें दर्जकर लेता है।

दक्षिण आफ्रिकाके हिन्दुस्तानी उस परीक्षा में उत्तीर्ण हुए। उन्होंने अग्निमें प्रवेश किया और उसमें से पूर्ण शुद्ध होकर निकले। इस लड़ाईके अन्तका आरम्भ किस तरह हुआ इसपर हम एक अलग प्रकरणमें विचार करेंगे ।

अध्याय ४७

अन्तका आरम्भ

पाठकोंने देखा होगा कि कौमने जितना बल लगाया जा सकता था और जितनेकी अपेक्षा रखी जा सकती थी उससे अधिक अहिंसात्मक बल लगाया। पाठकोंने यह भी देखा होगा कि इस बलको लगानेवाले लोगोंमें अधिकतर लोग ऐसे गरीब और दलित थे जिनसे कोई आशा नहीं रखी जा सकती थी। पाठकोंको यह भी याद होगा कि फीनिक्सके लोगोंमें से दो या तीनके सिवा दूसरे सब जिम्मेदारीका काम करनेवाले लोग जेलमें थे। फीनिक्सके बाहरके लोगोंमें स्वर्गीय सेठ अहमद मुहम्मद काछलिया थे। फीनिक्समें श्री वेस्ट, उनकी पुत्री और मगनलाल गांधी थे। सेठ काछ- लिया सामान्य देखभालका काम करते थे । कुमारी श्लेसिन ट्रान्सवालका सारा हिसाब- किताब और सीमाका उल्लंघन करनेवालोंकी देखरेख रखती थीं। श्री वेस्टपर 'इंडियन ओपिनियन 'के अंग्रेजी विभागको चलानेकी और श्री गोखलेसे तारोंके आदान-प्रदानकी जिम्मेदारी थी। ऐसे समयमें जब स्थितियां क्षण-क्षण बदलती थीं, पत्र-व्यवहारकी जरू- रत तो हो ही क्या सकती है ? तार ही पत्रोंके समान लम्बे भेजने पड़ते थे और उनको भेजना बड़ी जिम्मेदारीका काम था।

अब जैसे न्यूकैसिलके उत्तरी तटपर खानोंके क्षेत्रमें हड़तालियोंका केन्द्र था वैसे ही फीनिक्स भी हड़तालियोंका केन्द्र बन गया। वहां सैकड़ों लोग सलाह करने और आश्रय लेनेके लिए आने लगे। इस कारण सरकारकी दृष्टि फीनिक्सकी ओर जाये बिना कैसे रहती ? आसपास रहनेवाले गोरोंकी आँखें भी लाल हुईं। कुछ हदतक फीनिक्समें रहना खतरनाक हो गया था। फिर भी छोटे-छोटे बालकतक हिम्मत करके खतरेके कामोंको करते रहते थे। इसी बीच श्री वेस्ट गिरफ्तार कर लिये गये । वास्तव में देखें तो उन्हें गिरफ्तार करनेका कोई कारण नहीं था। हमने तय यह किया था कि श्री वेस्ट और मगनलाल गांधीको गिरफ्तार होनेका कोई प्रयत्न नहीं कारना चाहिए। बल्कि सम्भव हो तो गिरफ्तार होनेके अवसरोंसे दूर रहना चाहिए। इसलिए श्री वेस्टने