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दक्षिण आफ्रिकाके सत्याग्रहका इतिहास

कार्यालय भी जोहानिसबर्गमें ही था । जानेके लिए आखिरी गाड़ी ही बाकी थी । मुझे यह गाड़ी मिल गई।

अध्याय २२

समझौतेका विरोध -- मुझपर

- मैं रातको ९ बजेके करीब जोहानिसबर्ग पहुँचा। मैं सीधा अध्यक्ष ईसप मियाँके यहाँ गया। मैं प्रिटोरिया ले जाया गया हूँ, यह खबर उन्हें मिल गई थी, इसलिए वे एक तरहसे मेरी राह भी देख रहे थे । फिर भी मुझे अकेला किसी वार्डरके बिना आया देखकर सबको आश्चर्य और हर्ष हुआ। मैंने सुझाव दिया कि जितने लोग बुलाये जा सकें उतनोंको बुलाकर इसी समय सभाकी जाये। ईसप सियाँ और दूसरे मित्रों को भी यह बात पसन्द आई। चूंकि वहाँ अधिकांश हिन्दुस्तानी एक ही मुहल्लेमें रहते हैं, इसलिए उन्हें खबर देना कुछ मुश्किल नहीं था । अध्यक्षका घर मस्जिदके पास ही था और सभाएँ प्रायः मस्जिदके अहातेमें ही की जाती थीं। इसलिए इन्तजाम भी बहुत नहीं करना था। मंचपर एक बत्ती पहुँचाने भरकी व्यवस्था करनी थी। रातके लगभग ११ या १२ बजे सभा की गई। खबर देनेका वक्त कम होनेपर भी लगभग हजार आदमी इकट्ठे हो गये होंगे ।

सभा होने से पहले जो नेता वहाँ मौजूद थे मैंने उन्हें समझौतेकी शर्तें समझाई थीं। पहले कुछ लोगोंने उनका विरोध किया, किन्तु वे लोग मेरा तर्क सुननेके बाद समझौतेको समझ गये। फिर भी एक सन्देह तो सभीको था, जनरल स्मट्स दगा करें तो क्या होगा? खूनी कानून अमलमें न आनेपर भी हमारे ऊपर तलवारकी तरह लटकता तो रहेगा ही। यदि हम इस बीच ऐच्छिक परवाने लेकर अपने हाथ कटा देंगे तो हमारे हाथसे इस कानूनके विरोधका एकमात्र बड़ा शस्त्र भी निकल जायेगा। यह तो जान-बूझकर शत्रुके पंजेमें फँसने-जैसा होगा। सच्चा समझौता तो वही कहा जायेगा कि पहले खूनी कानून रद किया जाये और बादमें हम ऐच्छिक परवाने लें। "

मुझे यह दलील अच्छी लगी। मुझे दलील करनेवालोंकी तीक्ष्ण बुद्धि और हिम्मतपर गर्व हुआ। मैंने अनुभव किया कि सत्याग्रही ऐसे ही होने चाहिए। उनके इस तर्कके उत्तरमें मैंने कहा, आपका तर्क अच्छा और विचारणीय है। हम खूनी कानून रद होनेके बाद ही ऐच्छिक परवाने लें, इससे अच्छी बात तो दूसरी हो ही नहीं सकती। किन्तु मैं इसे समझौतेका लक्षण नहीं मानूँगा। समझौतेका तो अर्थ यह है कि जिन बातोंमें सिद्धान्तका भेद न हो उनमें दोनों पक्ष एक-दूसरेको पर्याप्त छूट दें। हमारा सिद्धान्त यह है कि हम खूनी कानूनके आगे न झुकेंगे और उसके अनुसार जिस कामको करनेमें हमें कोई आपत्ति न होगी, उस कामको भी न करेंगे। हमें इस सिद्धान्तपर दृढ़ रहना है। सरकारका सिद्धान्त यह है कि हिन्दुस्तानी ट्रान्सवालमें

१. ३० जनवरी, १९०८ को ।

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