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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

मैं इतना कहकर बैठ गया। लोगोंने अत्यन्त शान्तिपूर्वक एक-एक शब्द सुना । दूसरे नेता भी बोले । सभीने अपनी जिम्मेदारी और श्रोताओंकी जिम्मेदारीका विवेचन किया। फिर सभापति उठे। उन्होंने भी प्रस्तावको समझाया और तब अन्तमें पूरी सभाने खड़े होकर, हाथ ऊँचे करके और ईश्वरको साक्षी मानकर कानून पास हो जाये तो उसको न माननेकी प्रतिज्ञा की। इस दृश्यको मैं तो कभी भूल नहीं सकता। लोगोंमें अपार उत्साह था । दूसरे दिन इस नाटयशालामें कोई दुर्घटना हुई और पूरा भवन जलकर राख हो गया । मुझे लोगोंने यह खबर उसके एक दिन बाद सुनाई और नाट्यशालाके भस्म होनेको शुभ शकुन बताकर हिन्दुस्तानी समाजको बधाई दी। उन्होंने कहा कि यह कानून भी नाट्यशालाकी तरह भस्म होकर रहेगा। ऐसे शकुनों और अपशकुनोंका मेरे ऊपर कभी कोई प्रभाव नहीं हुआ, इसलिए मैंने उसे कोई महत्त्व नहीं दिया। यहाँ मैंने इस बातका उल्लेख लोगोंकी उस समयके उत्साह और भावना बतानेके उद्देश्यसे ही किया है। इन दोनों बातोंके दूसरे बहुतसे प्रमाण पाठक अगले प्रकरणोंमें देखेंगे।

इस जबर्दस्त सभाके होनेके बाद कार्यकर्ता काममें जुट गये। उन्होंने जगह- जगह सभाएँ की और उनमें सर्वत्र सबकी अनुमतिसे प्रतिज्ञा कराई। अब 'इंडियन ओपिनियन' में मुख्यतः इस खूनी कानूनकी ही चर्चा रहती थी ।

दूसरी ओर स्थानीय सरकारसे मिलनेकी कार्रवाई भी की गई। उपनिवेश विभागके मन्त्री श्री डंकनसे एक शिष्टमण्डल मिला। उसने उनको समाजकी प्रतिज्ञासे अवगत किया। इस शिष्टमण्डलमें सेठ हाजी हबीब भी थे। उन्होंने कहा, "यदि कोई अधिकारी मेरी स्त्रीकी अँगुलियोंकी निशानी लेने आयेगा तो मैं अपने गुस्सेपर काबू नहीं रख सकूंगा। मैं उसे गोली मार दूंगा और स्वयं अपनेको गोली मारकर मर जाऊँगा।" मन्त्रीने एक क्षण हाजी हबीबके मुखकी ओर देखा और फिर कहा, सरकार इस कानूनको स्त्रियोंपर लागू करने या न करनेके सम्बन्धमें विचार कर रही है। मैं इतना विश्वास तो तत्काल ही दिला सकता हूँ कि कानूनमें से स्त्रियोंसे सम्बन्धित धाराएँ निकाल दी जायेंगी। सरकार इस सम्बन्धमें आपके मनोभावोंको समझ सकती है और वह उनका आदर करना चाहती है। किन्तु दूसरी धाराओंके सम्बन्धमें तो मुझे खेदपूर्वक यही कहना पड़ेगा कि सरकार दूसरी धाराओंपर दृढ़ है और दृढ़ रहेगी। जनरल बोथा चाहते हैं कि आप लोग भली-भाँति विचार करके इस कानूनको मंजूर कर लें। इसे सरकार गोरोंके अस्तित्वकी रक्षाके लिए आवश्यक समझती है। यदि कानूनके उद्देश्य- की रक्षा करते हुए आप लोग उसके ब्यौरेकी बातोंके सम्बन्धमें कोई सुझाव देना चाहें तो सरकार उसपर अवश्य ध्यान देगी। मैं शिष्टमण्डलको यह सलाह देता हूँ कि आप लोग कानूनको मंजूर कर लें और उसकी ब्यौरेकी बातोंके बारेमें ही सुझाव दें। आप लोगोंका हित इसी में है।" मैं यहाँ मन्त्रीके सम्मुख दिये हुए तर्कोंका उल्लेख नहीं करता क्योंकि इन सबका हम पहले उल्लेख कर चुके हैं। मन्त्रीके सम्मुख दलीलें तो वही रखी गई थीं; अलबत्ता शब्दोंमें अन्तर अवश्य था। शिष्टमण्डलने मन्त्री महोदयको बताया कि

१. देखिए खण्ड ५, ४२०-२१ ।

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