पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 29.pdf/१०४

यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
७८
सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

होगी। यदि इस जिम्मेदारीको माँ-बाप पूरा न करेंगे तो उसे सोलह वर्षकी आयु होने- पर बालकोंको स्वयं पूरा करना होगा और ऐसा न करनेपर इन सोलह वर्षकी आयुके तरुणोंको भी माँ-बापोंके समान ही सजा दी जा सकेगी। प्राथियोंको जो परवाने दिये जायेंगे उनको जब भी कोई पुलिस अधिकारी देखना चाहे उसी समय परवाने उसके सामने उन्हें प्रस्तुत करने होंगे। परवाना न दिखाना अपराध होगा और उसके लिए अदालत कैद या जुर्मानेकी सजा दे सकेगी। यह परवाना राह चलते हिन्दुस्तानियोंसे भी माँगा जा सकेगा। पुलिस अधिकारी किसीके भी घरमें घुसकर परवाना देख सकेंगे। ट्रान्सवालमें बाहरसे आनेवाले हिन्दुस्तानी स्त्री या पुरुषके लिए अपना परवाना जाँच करनेवाले पुलिस अधिकारीको दिखाना आवश्यक होगा। यदि कोई हिन्दुस्तानी किसी कारण अदालतमें या चुंगीके दफ्तरमें व्यापारका परवाना अथवा साइकिलकी मंजूरी लेनेके लिए जायेगा तो उसे वहाँके अधिकारीको भी परवाना दिखाना होगा। इसका अर्थ यह है कि यदि कोई हिन्दुस्तानी किसी सरकारी दफ्तरमें उस दफ्तरसे सम्बन्धित कामके लिए जायेगा तो हिन्दुस्तानीकी प्रार्थना स्वीकार करनेसे पहले अधिकारी उससे उसका परवाना दिखाने के लिए कह सकेगा। इस पर वानेको दिखानेसे अथवा जिसके पास परवाना हो उससे अधिकारी कोई ब्यौरा पूछे तो उसे बताने से इनकार करना दण्डनीय अपराध होगा और उसके लिए अदालत कैद या जुर्मानेकी सजा दे सकेगी।

जहाँतक मैं जानता हूँ, दुनियाके किसी भी भागमें स्वतन्त्र लोगोंके लिए ऐसा कोई कानून नहीं है। मैं जानता हूँ कि नेटालमें हिन्दुस्तानी गिरमिटिया भाइयोंके लिए परवानेका कानून बहुत कड़ा है, किन्तु वे तो बेचारे स्वतन्त्र मनुष्य ही नहीं माने जाते । फिर भी कहा जा सकता है कि उनका परवाना कानून इस कानूनसे नरम है और उस कानूनको तोड़नेके जुर्ममें दी जानेवाली सजा इस कानूनको तोड़नेकी सजाके मुका- बलेमें कुछ भी नहीं है। लाख रुपयेका व्यापार करनेवाला हिन्दुस्तानी व्यापारी इस कानूनके अन्तर्गत निर्वासित किया जा सकता है अर्थात् इस कानूनको तोड़नेपर ऐसी स्थिति पैदा हो सकती है कि वह आर्थिक दृष्टिसे बिलकुल बरबाद हो जाये । धैर्यवान पाठक आगे चलकर देखेंगे कि इस कानूनको भंग करनेके अपराधमें निर्वासनकी सजाएँ दी भी गईं । हिन्दुस्तानमें जरायमपेशा जातियोंके लिए कुछ कड़े कानून हैं। उन कानूनोंकी तुलना सहज ही इस कानूनसे की जा सकती है और तुलना करनेपर कुल मिलाकर यह कानून उन कानूनोंसे किसी भी तरह कम कठोर नहीं कहा जा सकता । इस कानूनमें दसों अँगुलियों और अँगूठोंकी निशान लेनेकी जो बात थी वह दक्षिण आफ्रिकाके लिए बिलकुल नई थी। मैंने इस सम्बन्धका साहित्य पढ़नेके विचारसे एक पुलिस अधिकारी श्री हेनरीकी लिखी 'अँगुलियोंकी निशानियाँ (फिंगर इम्प्रेशन्स) नामक पुस्तक पढ़ी। मैंने उसमें देखा कि कानूनके मुताबिक इस तरह अँगुलियों की निशानियाँ केवल अपराधियोंसे ही ली जाती हैं। इसलिए, मुझे जबर्दस्ती दसों अँगुलियों और अंगूठोंकी निशानियाँ लेनेकी बात बहुत ही भयंकर लगी । इस विधेयकमें स्त्रियोंके लिए परवाना लेनेका नियम पहली बार ही रखा गया था और इसी प्रकार सोलह वर्ष या इससे अधिक आयुके बालक-बालिकाओंके लिए परवाना लेनेका नियम भी नया ही था ।

Gandhi Heritage Portal