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इस प्रसंगमें यह बात याद रखने योग्य है कि उन्हें रातमें नींद बहुत मुश्किलसे आती है। इसलिए वे आधी रातमें भी चरखा चलाते हैं। इससे दिनचर्यासे उत्पन्न उनकी अनेक प्रकारको मानसिक व्यथाएँ शान्त हो जाती हैं, और फिर वे शान्तिसे सो पाते हैं। इस प्रकार चरखा राजनीतिज्ञ, वियोगी और विधवाको राहत दे सकता है।

महागुजरातमें खादी प्रचार

गुजरात खादी मण्डलने महागुजरातमें खादी-प्रचारसे सम्बन्धित जो कुछ आँकड़े प्रकाशित किये हैं, उनसे पता चलता है कि गुजरातमें तीस संस्थाएँ खादीका काम करती हैं। इनमें से १६ संस्थाओंने पिछले १२ महीनोंमें अपने काते सूतसे अथवा बाजारसे खरीदे हाथ-कते सूतसे २६,४०० वर्ग गजसे अधिक खादी तैयार की। इस बीच ३,८५,७६१ रुपये, १ आना और ३ पाईकी खादी बिकी। इसमें से व्यवस्था-खर्च आदि शद्ध बिक्री कुछ कम आती है। इसमें बाहरसे, जैसे कि आन्ध्रसे, आई खादी भी शामिल है।

खादीका यह उत्पादन महागुजरातका कुल खादी-उत्पादन नहीं माना जा सकता। उदाहरणके लिए कच्छ और काठियावाड़में जिन कई जगहोंमें चरखा कभी बन्द नहीं हुआ वहाँ तो खादी बुनी ही जाती रही है। फिर भी हमें जितना करना है, उसकी दृष्टिसे उपर्युक्त उत्पादन नगण्य माना जायेगा।

इन आंकड़ोंके अतिरिक्त नीचे लिखी बातोंके सम्बन्धमें सूचना देना भी उचित है—जैसे चरखोंकी संख्या, हाथ-कते सूतसे बुननेवालोंकी संख्या, उनमें से कितने लोगोंने इस आन्दोलनके कारण बुनाई शुरू की और कितने ऐसे हैं जिन्होंने बुनाई नई-नई सीखी है, उनमें अन्त्यज माने जानेवाले कितने हैं और वे प्रतिमास कितनी कमाई करते हैं आदि। हमें यह जानकारी भी चाहिए कि कितने चरखे मजदूरीके लिए चलाये जाते हैं और कितने यज्ञार्थ। बाहरसे कितने पैसेकी खादी आई? इन संस्थाओंमें कितने स्वयंसेवक काम करते हैं और उनमें से कितने वेतनपर काम करते हैं तथा कितने बिना वेतनके? उनका औसत वेतन क्या है और एक व्यक्तिको अधिकसेअधिक तथा कमसे-कम कितना वेतन दिया जाता है?

[गुजरातीसे]
नवजीवन, ९–८–१९२५