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१९. पत्र : घनश्यामदास बिड़लाको

शुक्रवार, ७ अगस्त, १९२५

भाईश्री घनश्यामदासजी,

आपके पत्रका उत्तर[१] मैंने जमनालालजीके मार्फत भेजा था, वह मिला होगा। आपका लम्बा पत्र मुझे मिला था तब मैंने उसका सविस्तार उत्तर[२] भेज दिया था और उसकी निजकी रजिस्ट्री भी है। वह उत्तर सोलनमें भेजा गया था। कैसे गुम हो गया, मैं नहीं समझ सकता हूँ।

उसमें मैंने जो लिखा था उसकी तफसील यहाँ देता हूँ। आपने एक लाख का दान देशबन्धु स्मारकमें किया, उसकी स्तुति की और यथाशक्ति शीघ्रतासे देनेकी चेष्टा करनेकी प्रार्थना की।

पू॰ मालवीयजी और पू॰ लालाजीको मैं साथ नहीं दे सकता हूँ, उसका कारण बताया और मेरे उनके लिए पूज्यभावकी प्रतिज्ञा की। पं॰ मोतीलाल और स्वराज्यदलको सहाय देता हूँ, क्योंकि उनके आदर्श कुछ-न-कुछ तो मेरेसे मिलते है। उसमें व्यक्तिगत सहायकी बात नहीं है।

और बातें तो बहुत-सी लिखी थीं, परन्तु इस समय वे सब मुझे याद भी नहीं हैं।

आप दोनोंका स्वास्थ्य अच्छा होगा। मेरे उपवासकी कथा आपने सुन ली होगी। मेरे इस खतके लिखनेसे ही आप समझ सकते है कि मेरी शक्ति बढ़ रही है। उम्मीद है थोड़े दिनोंमें मैं थोड़ा शारीरिक श्रम उठा सकूँगा।

में ता॰ १० को वर्धा पहुँचूंगा। वहाँ कुछ दस दिन रहनेको मिलेगा।

आपका
मोहनदास

गांधीजीकी छत्रछायामें
  1. उपलब्ध नहीं है।
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