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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

 

माण्डवीकी गन्दगी

जिस दिन मैंने सुन्दर वातावरणमें, साफ जगह, जहाँ मन्द-मन्द वायु बह रही थी, वृक्षारोपण किया उसी दिन 'दर्शन देनेके लिए' लोग मुझे माण्डवी शहरमें ले गये थे। दर्शन देनेकी यह क्रिया मेरे लिये विषम सिद्ध हुई, क्योंकि इस क्रियाको करते हुए मुझे माण्डवीकी गन्दगीके दर्शन भी करने पड़े। प्रातःकाल जब पवित्र होकर पवित्र वातावरणमें लोगोंको ईश्वरका नाम लेते दिखाई देना चाहिए उस समय माण्डवीके वयोवृद्ध स्त्री-पुरुष और बालक अपनी गन्दगीसे गलियोंका शृंगार करते दिखाई देते है। इसमें उन्हें न तो शर्म आती है न संकोच होता है, न मनमें आरोग्यका विचार उठता है और न समाजपर दया आती है, माण्डवीके नागरिक अज्ञानी नहीं, मर्ख नहीं, उन्होंने दुनिया देखी है, वे विदेशोंमें गये है, स्वच्छ शहर भी उन्होंने देखे हैं। ऐसा होनेपर भी अपनी गलियोंको, जहाँ उन्हें हमेशा नंगे पाँव चलना होता है जहाँ उनके बालकोंको सारा दिन खेलना होता है और जहाँ वे जातीय भोजोंका आयोजन भी करते हैं, बिगाड़ते हुए उन्हें कैसे संकोच नहीं होता, यह समझमें न आ सकनेवाली बात है। माण्डवीमें जो गन्दगी होती है उसका पूरा-पूरा वर्णन करते हुए मुझे शर्म आती है। मैंने जो लिखा है उससे पाठक अनुमान कर लें। मुझे स्वीकार करना चाहिए कि जो भयंकर दृश्य मैंने माण्डवीमें देखा सो और कहीं नहीं देखा, ऐसी बात नहीं। मुझे याद है ऐसा ही दृश्य मैंने बचपनमें पोरबन्दरमें देखा था। इस तरहकी गन्दगी शौचादि नियमोंका घोर अज्ञान और उनका भंग इस पवित्र भूमिमें मैंने हर जगह देखा है तथा मुझे उससे दुःख हुआ है।

परन्तु सारा जगत पाप करे तो भी हमें पाप करनेका अधिकार नहीं मिलता, इसी तरह अन्य स्थानोंकी गन्दगीसे माण्डवीका बचाव नहीं हो सकता और चूंकि कच्छके संस्मरण लिखना तथा मैंने जो देखा उसे कह देना में सेवाधर्मका अंग समझता हूँ इसलिए माण्डवीका यह दुःखद स्मरण लिखे बिना मै रह नहीं सकता। जैसा माण्डवीमें होता है वैसा कच्छके शहरोंमें तथा गांवोंमें अन्यत्र भी होता है। परन्तु माण्डवी बन्दरगाह है; वहाँके लोग अपेक्षाकृत अधिक साहसिक और सयाने माने जाते हैं, उनके पास धन है इसीसे उनका दोष ज्यादा बड़ा माना जाना चाहिए। राज्यकी मदद मिले या न मिले, परन्तु लोगोंको नगरका आवश्यक सुधार तुरन्त कर लेना चाहिए। शौचादिके नियमोंमें माहिर लोगोंकी मदद लेकर नागरिकोंको निजी और सार्वजनिक पाखाने बनवाने चाहिए। जातीय प्रमुखोंने अस्पृश्योंका तिरस्कार करने में जितनी दलचस्पी ली है, माण्डवीकी गन्दगी दूर करने में उन्हें उसकी अपेक्षा ज्यादा दिलचस्पी दिखानी चाहिए। जो शौचादि नियमोंको भंगकर निर्धारित पाखानोंसे बाहर क्रियाएँ करें अथवा पाखानोंका दुरुपयोग करें, पंचोंको उन लोगोंका बहिष्कार करना चाहिए और ऐसा करके वे अपनी पंचकी हैसियतको ज्यादा सुशोभित कर सकते हैं। यह काम आसान और सस्ता है। केवल थोड़े उत्साहकी आवश्यकता है। माण्डवीमें समय-समयपर प्लेगका प्रकोप होता रहता है। जहाँ धरती माताका इतना अधिक अपमान होता हो वहाँ प्लेगका न होना ही आश्चर्यकी बात कही जायेगी। माण्डवीकी स्वाभाविक हवा तो