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२५०. सामाजिक सहकार

२२ नवम्बर,१९२५

अहमदाबाद शहरकी नगरपालिकाके सम्बन्धमें डॉ॰ हरिप्रसादका दूसरा पत्र में बिना किसी संकोचके इस अंक प्रकाशित कर रहा हूँ। मैं ज्यादातर 'नवजीवन के पाठकोंका समय किसी एक शहर अथवा एक ही गाँवकी बात करने में नहीं लेता; मैं समस्त गुजरातसे अथवा समस्त हिन्दुस्तानसे सम्बन्धित सवालोंकी चर्चा ही करता है और अभी अहमदाबादकी गलियोंके वर्णनमें 'नवजीवन' की जो जगह रोक रहा हूँ वह तो यह सोचकर रोक रहा हूँ कि 'यथा पिण्डे तथा ब्रह्माण्डे'। कारण, हम जो गन्दगी, अहमदाबादमें देखते हैं और यह गन्दगी जिन बुरी आदतोंका परिणाम है उसका अनुभव हम सारे भारतवर्षमें करते हैं। यदि किसी एक स्थानमें भी लोगोंको सफाईकी तालीम मिल जाये और यदि हम उस स्थानको आदर्श बना सकें तो अन्य सब स्थानोंपर ऐसी तालीम देकर सफाई रखना आसान हो जाय।

हमारी भयंकर गन्दगीका कारण हमारी लापरवाही और हमारा सामाजिक असहकार है। जहाँ असहकार होना चाहिए वहाँ तो हम इच्छापूर्वक अथवा अनिच्छापूर्वक अपना सहकार करते हैं; उदाहरणार्थ, अपनी अनेक बुरी आदतोंके साथ हम सहकार करते हैं। सरकारके तन्त्रके साथ, यद्यपि हम देख रहे हैं कि वह राष्ट्रके सत्त्वका नाश कर रहा है, हम सहकार करते हैं। इसी प्रकार हम अपनी गन्दगीके साथ, जो हमारे शरीरका नाश करती है और हमें प्लेग आदि रोगोंका शिकार बना देती है, सहकार करते हैं। लेकिन अपने पड़ौसियोंके साथ, जिनके सुखमें हमारा सुख निहित है और हमारे प्रत्येक कार्यमें जिनकी सुविधाका विचार होना ही चाहिए हम असहकार करते हैं। कानूनमें एक कहावत है जो केवल वकीलोंके वितण्डावादके लिए नहीं रची गई है परन्तु जो धार्मिक सिद्धान्तकी सूचक है। कहावत यह है : 'अपनी वस्तुका उपयोग इस तरह करो जिससे दूसरोंको हानि न पहुँचे।' यही बात 'गीता' में दूसरी तरह कही गई है "जो मनुष्य अपनेको दूसरोंमें देखता है और दूसरोंको अपनेमें देखता है, वही सच्चा देखनेवाला है, वही ज्ञानी है।" अहिंसाके मूलगामी और सर्वस्पर्शी सिद्धान्तको हम कदम-कदमपर भंग करते है और शौचादि-क्रियाओंके सम्बन्धमें हम जो लापरवाही बरतते हैं उसमें तो उक्त सिद्धान्तका हमारा यह भंग बहुत भयंकर रूपमें प्रकट होता है।

अपने आँगनका कचरा मैं पड़ोसीके आँगनमें फेकूँ, अपनी खिड़कीसे काँचके टुकड़े फेकूँ, कचरा पानी बहाऊँ और थूकूँ तथा ऐसा करते हुए नीचे चलनेवाले व्यक्तियोंका खयालतक भी न करूँ—यह कितनी लापरवाहीकी बात है? कैसी हिंसा है? समाज के साथ कैसा घातक असहकार है? मेरी नालीका पानी दूसरोंका नुकसान करेगा, इस बारेमें लापरवाही दिखलाना कितना अविचारपूर्ण है। हम इतना ही समझ लें