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२४४. मथुरादास त्रिकमजीको लिखे पत्रका अंश

[१८ नवम्बर, १९२५][१]

तुम्हारी तबीयतसे सम्बन्धित पत्र पढ़कर मैं चिन्तामें पड़ गया है। पहले तो महादेव अथवा देवदासको भेजने का विचार किया। बादमें नरगिसबहन[२] याद आई। वे यह पत्र लेकर आ रही हैं। उन्हें सब-कुछ बताना। वे अपनी स्वतन्त्र राय तो मुझे तारसे सूचित करेंगी; लेकिन तुम पूरी बात तफसीलसे बताना। जरा भी जरूरत जान पड़ें तो उन्हें तार करनेके लिए कहना जिससे यहाँसे महादेव अथवा देवदास आयेंगे। तुम्हें आराम लेना चाहिए। बा आशीर्वाद भेजती है।

[गुजरातीसे]
बापुनी प्रसादी,
 

२४५. टिप्पणियाँ
नग्न सत्य

हमने भारतको भारतके लाभके लिए नहीं जीता। मैं जानता हूँ कि मिशनरियोंकी सभाओं में ऐसा कहा जाता है कि हमने भारतीयोंका जीवनस्तर ऊपर उठानेके लिए ही भारतपर कब्जा किया है, यह पाखण्ड है। हमने भारतको इसलिए जीता कि ग्रेट ब्रिटेनके मालके लिए हमें बाजार मिले। हमने उसे तलवारके जोरसे जीता और तलवारके जोरसे ही हमें उसपर अपना आधिपत्य कायम रखना चाहिए। ("शर्म-शर्म" की आवाजें।) आप चाहें तो शौकसे "शर्म-शर्म" की आवाजें लगायें। लेकिन मैं तो वही कह रहा हूँ जो हकीकत है। भारतमें मिशनरियोंके काममें मेरी भी रुचि है और मैंने उस तरहका काफी काम किया है, लेकिन मैं ऐसा पाखण्डी नहीं हूँ कि कहूँ कि हम भारतीयोंकी भलाईके लिए ही भारतको अपने कब्जेमें रखे हुए हैं। सच्चाई यह है कि हम इसपर इसीलिए अपना कब्जा जमाये हुए हैं कि यह आम तौरपर ब्रिटेनके भालके लिए और खास तौरपर लंकाशायरके सूती कपड़ों वगैरहके लिए सबसे अच्छा बाजार है।
 
  1. जैसा कि प्रकाशित साधन-सूत्रमें दिया गया है।
  2. दादा भाई नौरोजीकी पौत्री।