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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

 

दक्षिण आफ्रिकाके भारतीय

भले भाई एन्ड्र्यूज जहाँ दुःख हो वहाँ अवश्य होते ही हैं। उड़ीसामें पशुओंके कष्टकी ख़बर सुनकर वे वहाँ पहुँचे थे। बम्बईके मजदूरोंके दुःखमें उन्होंने भाग लिया। अब दक्षिण आफ्रिकाके भारतीयोंके दुःखमें भाग लेने के लिए वहाँके लिए रवाना हो गये हैं। सेवा ही जिनका धर्म है उन्हें सेवामें ही सम्पूर्ण सन्तोष मिलता है। दक्षिण आफ्रिकाके भारतवासी यदि इस भले अंग्रेजकी सहायताका पूरा-पूरा उपयोग करना चाहते है तो उन्हें दो बातें ध्यान रखनी चाहिए। अनेक बार जब कोई सहायक हमारी सहायता करने आता है उस समय हम यह सोचकर ढीले पड़ जाते है कि वही सब कुछ कर देगा; यह स्थिति दक्षिण आफ्रिकाकी नहीं होनी चाहिए। श्री एन्ड्यूजकी उपस्थितिसे यदि और भी सावधान हो जायें तथा अधिक बनें तभी उन्हें उनके जानेका लाभ मिल सकता है। उन्हें इकट्ठा होकर अपने पारस्परिक मतभेदोंको भूलकर दृढ़ता और हिम्मतके साथ कार्य करना है और यदि ऐसा हुआ तो बाजी अभी हाथसे गई नहीं है। सत्याग्रहका निश्चय करने से पहले पूरी तरह विचार करें। सत्याग्रहकी धमकी नहीं दी जा सकती है। सत्यका आग्रह रखनेवाला सत्य ही बोलता है, सत्य ही करता है। सत्याग्रह न करने में कोई बेइज्जती नहीं है। लेकिन करनेका निश्चय करने के बाद न करने में बेइज्जती होगी। इतना ही नहीं इससे कौमका बहुत ज्यादा नुकसान होने की सम्भावना है।

[गुजरातीसे]
नवजीवन, १५–११–१९२५
 

२४३. पत्र : सी॰ एफ॰ एन्ड्र्यूजको

सोमवार [१६ नवम्बर, १९२५][१]

प्रिय चार्ली,

तुम्हारे आदेशका पालन किया जा रहा है। आज प्रातः सरोजनीको तार[२] भेज दिया गया है। तुम्हारे कामके बारेमें मैं एक सम्पादकिय[३]

आशा है, तुम स्वस्थ सानन्द होगे। यात्राके दौरान भगवान तुम्हें स्वस्थ रखें।

अत्यंत स्नेह सहित।

तुम्हारा,
मोहन

 
  1. एन्ड्र्यूज सरकारी शिष्टमण्डलसे, जिसने २५ नवम्बरको प्रस्थान किया था, कुछ दिन पहले ही दक्षिण आफ्रिकाके लिए रवाना हुए थे। इससे तथा यंग इंडियामें सम्पादकीयके उल्लेखसे प्रकट होता है, कि यह १६ नवम्बरको ही लिखा गया था, क्योंकि सोमवारको १६ नवम्बर ही था।
  2. यह उपलब्ध नहीं है।
  3. देखिए "दक्षिण आफ्रिकाके भारतीय", २६–११–१९२५।