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पत्र : डा॰ मु॰ अ॰ अन्सारीको


उदारवादी और निर्दलीय कांग्रेसमें आयें और इसकी कोशिश करें कि स्वराज्यवादी उनको स्वीकार कर लें—इसके लिए रास्ता खुला हुआ है, मुझे इसमें कोई बाधा नहीं दिखती। जिस तरह वे विरोधियोंका और सरकारका विचार-परिवर्तन करने तथा उन्हें अपनी बात मानने के लिए राजी कर सकनकी आशासे कौंसिलों और धारासभाओंमें गये थे वैसे ही वे कांग्रेसमें भी आ सकते हैं।

श्री गांधीका इरादा अभी पूरा एक महीना आश्रममें ही रहनेका है।

[अंग्रेजीसे]
हिन्दू, १–११–१९२५
 

२३६. पत्र : डा॰ मु॰ अ॰ अन्सारीको

७ नवम्बर, १९२५

प्रिय डा॰ अन्सारी,

आपके और हकीम साहबके हस्ताक्षरोंसे भेजा पत्र[१] मिला। कांग्रेस अध्यक्षके राष्ट्रसंघको तार भेजनेसे क्या बन सकता है? मैं अपने-आपको पिंजड़े में बन्द शेरकी स्थितिमें महसूस करता हूँ। अन्तर सिर्फ इतना ही है कि जहाँ वह आजाद होनेकी बेकारकी कोशिश में बेचैन रहता है और अपने दाँत कटकटाता तथा क्रोधसे लोहेके सीकचोंपर झपटता रहता है, वहाँ मैं अपनी सीमाएँ जानता हूँ, इसलिए बेकार हाथपाँव नहीं मारता। यदि हमारे पीछे कोई शक्ति हो तो मैं आपके सुझावके अनुसार तुरन्त तार भेज दूँ। बहुत-सी बातें, जिनका मैं 'यंग इंडिया' में जिक्र नहीं करता, मेरे हृदयमें जाकर बैठ जाती है और वे प्रकाशित बातोंसे बहुत अधिक वजनदार होती है। लेकिन मैं उस अदृश्य शक्तिके सामने उन बातोंके विषयमें भी रोज निवेदन करता हूँ। और जहाँतक नजर जाती है, वहाँतक जो-कुछ देखता हूँ, उसके बारेमें सोचकर मेरा मन दुःख और क्लान्तिसे भर उठता है और जब मैं अपने अन्तरके उस क्षीण स्वरको सुनता हूँ तो अपने चारों और प्रज्वलित ज्वालाके बावजूद आशान्वित होकर मुस्करा उठता हूँ। दुनियाके सामने हमारी कमजोरीका ढिंढोरा पीटने के लिए मुझे मजबूर न कीजिए।

हृदयसे आपका,
मो॰ क॰ गांधी

अंग्रेजी मसविदे (एस॰ एन॰ १०५९७) की फोटो-नकलसे।
 
  1. पत्रके सारके लिए देखिए "हमारी दुर्बलता", १२–११–१९२५ की पा॰ टि॰ १।