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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

लिए वह फार्म, आदर्श फार्म नहीं हो सकता, क्योंकि उसके पास तो मुश्किलसे दो-तीन एकड़ जमीन होती है, और उसके इस रकबेके भी कम हो जानेका अन्देशा बराबर बना रहता है।

राष्ट्रकी सेवा करनेवाला व्यक्ति चरखेको केन्द्र बनाकर अर्थात् जिन्होंने अपने आलस्यको त्याग दिया है और सहयोगके महत्त्वको समझ लिया है, उन लोगोंके बीच ऐसा व्यापक कार्यक्रम तैयार करेगा, जिसके अन्तर्गत मलेरियाके उन्मूलनके लिए प्रयत्न किये जायेंगे, सफाई-स्वच्छताको स्थितिमें सुधार किया जायेगा, गाँवोंके झगड़ोंको वहीं निपटा देनेकी कोशिश की जायेगी, पश-रक्षण और पशु-पालन किया जायेगा तथा ऐसे ही और भी सैकड़ों लाभदायक काम किये जायेंगे। जहाँ-कहीं चरखेका ठीक-ठीक प्रचार हुआ है, वहाँ सम्बन्धित ग्रामवासियों और कार्यकर्त्ताओंकी क्षमताके अनुसार समाजको उन्नत बनानेवाली इस प्रकारकी प्रवृत्तियाँ चल भी रही हैं।

यहाँ मेरा इरादा कवि-गुरुकी तमाम दलीलोंका तफसीलवार खण्डन करनेका नहीं है। जहाँ हमारे मतभेद बुनियादी नहीं है—और ऐसे मतभेदोंको बतानेकी मैंने कोशिश की है—वहाँ कवि-गुरुकी दलीलमें ऐसी कोई बात नहीं है जिसको स्वीकार करते हुए भी मैं चरखेके विषयमें अपनी स्थिति कायम न रख सकूँ। चरखेके सम्बन्धमें उन्होंने जिन बातोंका मजाक उड़ाया है, उनमें से बहुत-सी तो ऐसी है जो मैंने कभी कही ही नहीं है। मैंने चरखेमें जिन गुणोंके होनेका दावा किया है, कवि-गुरुके प्रहारोंसे उन गुणोंकी सच्चाईपर कोई आँच नहीं आई है।

सिर्फ एक ही बातसे, मेरे दिलको चोट पहुँची है। कवि-गुरुने फुरसतके समय इधर-उधरकी बातचीतोंमें सुना और विश्वास कर लिया है कि मैं राममोहन रायको बहुत "मामूली आदमी" समझता हूँ। मैंने उस महान सुधारकको कभी "मामूली आदमी" नहीं कहा, उन्हें मामूली माननेकी बात तो दूर रही। जिस प्रकार कवि गुरुकी दृष्टिमें वे बहुत बड़े आदमी है, उसी प्रकार मेरी दृष्टिमें भी हैं। मुझे याद नहीं है, एक प्रसंगको छोड़कर और कभी मैंने उनका जिक्र किया हो। वह प्रसंग पश्चिमी शिक्षाकी चर्चाका था। यह बात कटकके समुद्र तटपर चार साल पहले की है।[१] जहाँतक मुझे याद है, मैंने कहा था कि पश्चिमी शिक्षा प्राप्त किये बिना भी परम सुसंस्कृत हो सकना सम्भव है। और जब किसीने इस सम्बन्धमें राममोहनरायका नाम लिया, तब मुझे याद है, मैंने यह कहा था कि वे उपनिषद् इत्यादि ग्रन्थोंके अज्ञात रचयिताओंकी तुलनामें बहुत मामूली आदमी थे।[२] ऐसा कहना एक बात है और राममोहनरायको मामूली आदमी मानना बिलकुल दूसरी बात है। यदि मैं कहता हूँ कि टेनीसन, मिल्टन या शेक्सपियरकी तुलनामें बहत साधारण कवि थे तो इसका मतलब यह नहीं कि उन्हें मैं छोटा आदमी मानता हूँ। मेरा दावा है कि ऐसा कहकर मैं दोनोंके बड़प्पनको और भी बढ़ाता हूँ। यदि कवि-गुरुके प्रति मेरा

 
  1. देखिए खण्ड १९, पृष्ठ ४८२–८५।
  2. यहाँ गांधीजीकी याददाश्तमें कुछ चूक हो गई है। कटकके भाषणमें उन्होंने राममोहन रायकी वास्तवमें चैतन्य, शंकर, कबीर और नानकके साथ तुलना की थी।