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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

करीब सभी हिन्दुस्तानी मिलोंमें तैयार की जाती है और जापान भी ऐसा ही माल तैयार करके यहाँ भेजता है। वे कहते है कि उन गरीब लोगोंको जो समझते हैं कि उन्हें खादी पहनना चाहिए, जब माँगनेपर खादी जैसा लगनेवाला यह कपड़ा दिया जाता है और जबसे वे उसपर चरखा छपा देखते है तो बिना सन्देह किये उसे खरीद लेते हैं, और मनमें यह मानकर खुश होते हैं कि चलो हमने भी देशकी गरीबी दूर करनेमें कुछ योगदान दिया है। यह बड़े ही दुःखकी बात है कि मिलमालिकोंमें लेशमात्र भी स्वदेशाभिमान नहीं है। नफा उठाने के लिए या अब यों कहें कि मिलोंको कायम रखने के लिए वे राष्ट्रकी आकांक्षाका कुछ खयाल नहीं करते। और फिर भी ऐसे लोगोंकी कमी नहीं है जो कि भारतीय मिलोंकी सहायतासे विदेशी कपड़ेका बहिष्कार सफल बनानेकी आशा रखते है। इसमें उनका यह मानना बड़ी भारी भूल है कि खादी उद्योगकी स्थिति व्यावसायिक दृष्टि से सुदृढ़ हुए बिना भी मिलोंका राष्ट्रीय हितकी पूर्तिके लिए उपयोग किया जा सकता है। मुझे इसमें कोई सन्देह नहीं है कि एक दिन सभी मिलें राष्ट्र के हित-साधनके कार्यमें योगदान देंगी। लेकिन जबतक खादी, सारी दुनियाके विरोधके बावजूद अपनी स्थिति सुदृढ़ नहीं कर लेती, अर्थात् दूसरे शब्दोंमें कहें तो जबतक आम जनताकी रुचिमें इतना कान्तिकारी परिवर्तन नहीं आ जाता कि वे खादीके सिवा और दूसरा कपड़ा पहनने से ही इनकार कर दें, और इतने होशियार हो चुके हों कि सिर्फ देखकर ही असली और नकली खादीको पहचान सकें। तबतक वह दिन कभी नहीं आयेगा।

पतमें रद्दोबदल

अखिल भारतीय गोरक्षा मण्डलके साथ जो पत्र-व्यवहार हो वह मण्डलके सचिवको बम्बई नहीं, सत्याग्रहाश्रम, साबरमतीके पतेसे भेजा जाये।

[अंग्रेजीसे]
यंग इंडिया, २९-१०-१९२५
 

२१८. प्रश्नोत्तर

जब मैं लखनऊमें था, वहाँके 'इंडियन डेली टेलीग्राफ' के सहायक सम्पादकने मुझे उत्तर देनेके लिए एक प्रश्नमाला दी थी। वे प्रश्न बड़े दिलचस्प हैं, इसलिए मैं उनमें से सबसे महत्त्वके प्रश्नोंको अपने उत्तरोंके साथ यहाँ प्रकाशित कर रहा हूँ।

१. क्या आप एक साल या किसी निश्चित समयके अन्दर ही अन्दर सामूहिक सविनय अवज्ञा आन्दोलन आरम्भ करने का विचार रखते हैं?

अभी तो मैं ऐसी कोई आशा नहीं रखता हूँ कि निर्धारित किसी समयके अन्दर ही अन्दर में सामूहिक सविनय अवज्ञा आन्दोलन आरम्भ कर सकूँगा।

२. क्या आप इस सिद्धान्तको मानते हैं कि परिणामसे ही साधनोंका औचित्य सिद्ध होता है?

मैने इस सिद्धान्तको कभी नहीं माना।