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तार : तुलसी मेहरको

दिलमें उतारें और उसपर अमल करें; आप देखेंगे कि मैंने आपको संजीवनी बूटी दे दी है।[१]

यदि आपको ऐसी व्यवस्था पसन्द न हो तो मैं केवल अन्त्यजेतरोंकी सभामें जानेको तैयार हूँ लेकिन जहाँ अन्त्यजों को दूर बिठाया जाता है वहाँ जाने के लिए मैं तैयार नहीं हूँ। इसलिए आप जो कार्यक्रम बनायें सो मेरे स्वभावको ध्यानमें रखकर बनायें। मैं कहनेकी खातिर नहीं, बल्कि जानबूझकर सच कहता हूँ कि आज सभाने जो किया है वह विवेकपूर्वक किया है तथा मेरे प्रति अपने प्रेमको ही व्यक्त किया है। आपने मेरा कहा माना और मेरे सुझावको स्वीकार किया, इसके लिए मैं आपका ऋणी हूँ। ऐसा करके आप मंगरोल तथा भादरणके[२] लोगोंसे आगे बढ़ गये हैं।

[गुजरातीसे]
नवजीवन, १–११–१२९५
 

२०९. तार : तुलसी मेहरको

[२३ अक्तूबर, १९२५ या उससे पूर्व][३]

तुम्हारी बढ़ती हुई कमजोरीकी खबर सुनकर मनको बहुत दुःख पहुँचा। तुम्हें दूध व दूसरी चीजें लेनी चाहिए। अगर वहाँ तुम्हारा पूर्ण स्वस्थ होना असम्भव हो तो स्थान बदलकर ठण्डी जलवायुमें भी जाना चाहिए।

बापू

अंग्रेजी प्रति (जी॰ एन॰ ६५२२) की फोटो-नकलसे।

 
  1. इसके बाद गांधीजीने अगले दिन होनेवाली सभाकी व्यवस्थाके सम्बन्धमें कार्यकर्त्ताओंको सुझाव दिया कि वे लोगोंको आगाह कर दें कि अन्त्यज भी अन्य लोगोंके साथ बैठेंगे, लेकिन जिन्हें यह व्यवस्था पसन्द न हो उनके लिए अलग जगहका प्रबन्ध किया जायेगा।
  2. गुजरातके खेड़ा जिलेमें; ११ फरवरी १९२५ को गांधीजीने एक सार्वजनिक सभामें भाषण दिया, जिसमें अन्त्यजोंको अलग बिठाया गया था।
  3. महादेव देसाई द्वारा किशोरीलाल मशरूवालाके नाम भेजे गयें २३–१०–१९२५ के पत्रमें इस तारक उद्धृत किया गया है।