२०५. पत्र : मगनलाल गांधीको
[२२ अक्तूबर, १९२५][१]
तुम्हारा पत्र मिला। भाई पुरुषोतमके साथ जो प्रबन्ध उचित जान पड़े सो करना। उतने पैसे रेवाशंकरभाईसे[२] लेने का विचार है अथवा जैसी जरूरत जान पड़ेगी वैसा कर लेंगे। बच्चोंको[३] भेजनेके बारे में विचार कर रहा हूँ। अभी तो यहाँ बीमारीका कोई हिसाब ही नहीं है।
बापूके आशीर्वाद
सबसिडियरी ऑक्यूपेशन कोर्ट
शो ग्राउण्ड
- गुजराती पत्र (सी॰ डब्ल्यू॰ ७७४५) से।
- सौजन्य : राधाबहन चौधरी
२०६. पत्र: रणछोड़लाल पटवारीको
कार्तिक सुदी ५ [२२ अक्तूबर, १९२५][४]
कच्छसे किस रास्तेसे लौटूँ, यह प्रश्न उपस्थित है। [क्या] आप चाहते हैं कि मैं मोरवीके रास्ते वहाँ जाऊँ? यदि यह ठीक हो तो मोरवी में राजनीतिक परिषद्की[५] बैठक भी बुलाऊँ? यदि आप मुझे आने देंगे तो मैं आपसे खादीके और गोरक्षाके काममें अवश्य मदद माँगूँगा। आपकी अर्थात् आपके राज्यकी नहीं। वह तो मिलनी होगी तो मिलेगी। मुझे तो आपकी ही मदद चाहिए। इसका जवाब यदि आप तारसे दें तो अच्छा हो। भुजसे वह मैं जहाँ होऊँगा वहाँ मुझे भेज दिया जायेगा।
मोहनदासके प्रणाम