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टिप्पणियाँ

पहले मुझे मालूम न था। मेरे पास जो कतरन है उसके अनुसार लोहानी भिवानीसे ६ मील दूर हिन्दुओंकी एक छोटी-सी बस्ती है। कतरनमें आगे कहा गया है कि यहाँके हिन्दू जमींदारोंने कुछ मुसलमानोंको बसा लिया था। अब वहाँ हिन्दुओं और मुसलमानोंमें जमीनके एक टुकड़ेपर लड़ाई हो रही है। मुसलमानोंका दावा है कि यह जमीन धार्मिक कार्यके लिए दे दी गई है और हिन्दू कहते है कि यह सदासे उनकी सम्पत्ति है और इसपरसे उनका अधिकार कभी नहीं हटा। अब मामला अदालतमें पेश है। अब मुझे इस मामलेको यहीं छोड़ देना चाहिए। अखबारमें प्रकाशित अपने लेखमें लेखकने मुझसे कहा है कि मैं इस मामलेकी जाँच करूँ और इसके सम्बन्धमें अपनी राय दूँ। यदि मुझे वही अधिकार प्राप्त होता जो किसी समय मैं मानता था कि मुझे है, तो मैं निश्चय ही इसकी जाँच करता और झगड़ेको अदालतके जरिये तय करानेसे रोकता। किन्तु अब मुझे स्वीकार करना होगा कि मैं ऐसा करनेमें असमर्थ हैं। फिर भी मैं दोनों पक्षोंको यह सलाह देना चाहता हूँ कि वे उन लोगोंके पास जायें जिनपर उनका विश्वास हो और उनसे पंच-फैसला करायें

पूर्ण खण्डन

मद्रासके स्वराज्यवादियोंके विरुद्ध नगरपालिकाके पिछले चुनावोंके सम्बन्धमें रिश्वतखोरी, भ्रष्टाचार और आतंकके आरोप लगाये गये थे। उनका उल्लेख इन स्तम्भोंमें अभी हालमें किया जा चुका है। उन्हींके सम्बन्धमें मुझे श्रीयुत पी॰ एस॰ डोरायस्वामी मुदालियरका एक लम्बा पत्र मिला है। इस पत्रमें उन्होंने उन आरोपोंमें से प्रत्येकको बिलकुल गलत बताया है। इसके विपरीत उन्होंने यह भी कहा है कि पराजित दलने स्वराज्यवादियोंपर जो आरोप लगाये है वे स्वयं उस दलपर चरितार्थ होते हैं। पत्र-लेखकका कहना है कि स्वराज्यवादियोंको केवल अशिक्षित जनसाधारणने ही पूरा समर्थन नहीं दिया, बल्कि अनेक वकीलों, डाक्टरों और अन्य प्रमुख लोगोंने भी दिया था। उनका यह भी कहना है, उन लोगोंने ऐसा इसलिए किया कि वे दूसरे दलकी चालबाजियोंसे तंग आ गये थे। मैं पूरा पत्र नहीं छाप रहा हूँ, क्योंकि मैं नहीं चाहता कि 'यंग इंडिया' के पाठक एक स्थानीय विवादमें दिलचस्पी लें, और साथ ही मैं इस विषयपर कोई पत्र-व्यवहार भी नहीं छापना चाहता।

स्वाधीन भारतमें गोआवासियोंका स्थान

एक गोआनी मित्र पूछते हैं :

स्वराज्य मिल जानेपर आपका और समस्त भारतवासियोंका उन गोआवासियोंके प्रति क्या रुख रहेगा जो कि इसी देशमें रहते हैं और यहीं अपना जीविकोपार्जन करते हैं?

इसका अत्यन्त संक्षिप्त उत्तर यह है कि गोआवासियोंके प्रति वही रुख रहेगा जो कि किसी भी अन्य भारतीयके प्रति रहता है, क्योंकि गोआके लोग उतने ही भारतवासी हैं जितने कि भारतके किसी भी हिस्सेमें रहनेवाले अन्य लोग। वे एक विदेशी सरकारके अधीन हैं, इस कारणसे उनके साथ किये जानेवाले व्यवहारमें कोई