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१९८. पत्र : महादेव देसाईको

[२० अक्तूबर, १९२५ से पूर्व][१]

चि॰ महादेव,

तुम्हारा पत्र मिला। इसे चि॰ छगनलालके नाम लिखे लिफाफेमें रख मैं एक आना बचा रहा हूँ। दुर्गा चाहे तो बाएँ हाथसे लिखने की कोशिश करे।

हरिलालके बारेमें तुम जो कहते हो, मैं वही मानता हूँ। पठान गाड़ीका डिब्बा तो कबसे खड़ा है लेकिन वह कुछ कोई आनेवाला थोड़े ही है। मोनाने तो यह लिखा था कि हरिलालका सारा कर्ज भोंबलेने अदा कर दिया है।

डाह्याभाईके बारेमें यहींसे निश्चित करना सम्भव नहीं है। डाह्याभाई चाहे तो कच्छमें मेरे पास आ जाये। तुम यदि तैयार हो तो उसे लेते आना। वल्लभभाई भी आ रहे हैं।

तुम्हारी बात सच है। तुम बीमार तभी पड़े हो जब मुझसे दूर रहे हो। इसका फलितार्थ तो भयंकर है। तुम मझसे अलग रह ही नहीं सकते। फिर दुर्गका करता [होगा?] ऐसी स्थिति कितनी ही बार पोलककी[२] हुआ करती थी। और मैं कहा करता था कि पोलकने दो विवाह किये हैं और वह भी तब जब अंग्रेजी रिवाजके मुताबिक केवल एक ही की अनुमति है।

बापूके आशीर्वाद

[पुनश्च :]
मैं आज 'यंग इंडिया' के लिए कुछ और सामग्री भेज रहा हूँ। :गुजराती पत्र (एस॰ एन॰ ११४३५) की फोटो-नकलसे।
 
  1. पत्रमें जो कच्छ-यात्राकी जो चर्चा मिलती है उससे पता चलता है कि यह पत्र गांधीजीके २० अक्टूबर, १९२५ को कच्छके लिए बम्बईसे रवाना होनेसे पहले लिखा गया था।
  2. हेनरी पोलक।