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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

हिचकिचाहट नहीं होगी। लेकिन, अबतक तो ऐसा कोई विकल्प सुझाया नहीं जा सका है।

मैंने चरखा-संघकी स्थापना लोगोंको संगठित करने के लिए की है। इस संघका राजनीतिसे कोई सरोकार नहीं है। यहाँतक कि चाहें तो लॉर्ड रीडिंग और भारतीय सैनिक भी इसमें शामिल हो सकते हैं।

भाषणके दौरान महात्माजीने कहा कि शीघ्र ही इस सम्मेलनसे अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटीको पटनाको बैठकमें पास किये गये प्रस्तावको अपना सहयोग और समर्थन देनेको कहा जायेगा। लोगोंको कांग्रेसका सदस्य बनने के लिए और अधिक सुविधा प्राप्त कराने के उद्देश्यसे इस प्रस्तावमें सदस्यताकी योग्यतामें एक बुनियादी परिवर्तन किया गया है। यह कांग्रेसको पूरी तरहसे एक राजनीतिक संगठन बना देता है। तदनुसार कांग्रेस अपना सारा काम स्वराज्यवादी दलके जरिये करेगी और स्वराज्यवादी दलको नीतिपर कांग्रेसका नियन्त्रण रहेगा। स्वराज्यवादी दल तमाम स्थानीय केन्द्रीय विधायिका संस्थाओं में अपनी नीति और नियम स्वयं निर्धारित करेगा। इस दलके अपने कार्यक्रम हैं, अपने नियम हैं। इन कार्यक्रमों और नियमोंको कांग्रेसने अंगीकृत कर लिया है। स्वराज्यवादी दलके राजनीतिक कार्यमें कांग्रेस हर तरहकी सहायता देगी। कांग्रेसने बेलगाँव, दिल्ली और पटनामें स्वराज्यवादी दलको यह वचन दिया है कि वह उसे कांग्रेसके नामपर अपना काम करने की पूरी छूट देगी और उसमें पूरा सहयोग भी करेगी। स्वराज्यवादियोंने विधायक संस्थाओंमें खादी पहननेका चलन दाखिल कर दिया हैं—यहाँतक कि विधानसभाके अध्यक्ष भी खादी ही पहनते हैं। वे लोग नशाखोरी बन्द करने और जनताकी गरीबी दूर करनेके लिए विधायक संस्थाओंके जरिये बहुत-कुछ कर सकते हैं।

अगर कोई दूसरा दल इससे एक कदम आगे जाता, या कमसे-कम विधायक संस्थाओं और स्थानिक निकायोंमें ही हमारे रचनात्मक कार्यक्रमको स्थान दिला देता हो तो मैं उसे भी अपना समर्थन देने में कोई संकोच नहीं करता। अपना भाषण समाप्त करते हुए उन्होंने हिन्दुओंसे अनुरोध किया कि वे हिन्दू धर्मसे अस्पृश्यताके महा कलंकको दूर करें।[१]

[अंग्रेजीसे]
हिन्दुस्तान टाइम्स, २१–१०–१९२५
लीडर, २१–१०–१९२५
 
  1. अन्तमें सभाने देशबन्धु दास और सर सुरेन्द्रनाथकी मृत्यु पर अध्यक्ष द्वारा रखा गया प्रस्ताव पास किया। मोतीलाल नेहरूने सभामें अन्य एक प्रस्ताव भी जिसमें पटनामें हुई अ॰ भा॰ का॰ कमेटीकी बैठक में किये गये निर्णयोंकी ताईद की गई थी, पेश किया था।