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सम्पू्र्ण गांधी वाङ्मय



क्या आपको यह मालूम नहीं है कि आपके नेतृत्वमें चलनेके खातिर जिन लोगोंने अपनी जीविकाका एकमात्र धंधा छोड़ दिया है, वे सब अपने-अपने परिवारों और समाजके लिए बोझ बन गये हैं और इन सारे निठल्ले लोगोंके पालन-पोषणका भार इनके उन सगे-सम्बन्धियोंपर आ पड़ा है जो अच्छी स्थितिमें है? यदि आपको यह बात मालूम है तो आप इसके निराकरणके लिए क्या करने जा रहे हैं?

यहाँ मेरा प्रश्नकर्त्ताके दृष्टिकोणसे सहमत होना सम्भव नहीं है। इसमें शक नहीं कि कुछ लोगोंको काफी कष्ट उठाना पड़ रहा है। लेकिन, इसका कारण यह है कि ये लोग अपना रहन-सहन नहीं बदल पाये और अपना खर्च कम करने में असमर्थ रहे। इन लोगोंने फिरसे वकालत करने या नौकरीमें चले जानेकी अपेक्षा कष्ट सहन करना और अपनी जीविकाके लिए अपने परिजनों और मित्रोंपर निर्भर रहना कहीं अच्छा समझा। मेरे विचारसे तो उनके इस निर्णयमें अपमानकी कोई बात नहीं है।

क्या यहाँ न्यासियोंके एक बोर्ड के अधीन एक ऐसे सार्वजनिक कोषको स्थापनाकी आवश्यकता नहीं है जिससे सभी सच्चे सार्वजनिक कार्यकर्त्ताओं और उनके परिवारोंका भरण-पोषण हो सके?

जिस तरहके कार्यकर्त्ताओंका प्रश्नकर्त्ताने उल्लेख किया है, उस तरहके कार्यकर्त्ताओंके भरण-पोषणके लिए सार्वजनिक कोषका निर्माण करना मुझे ठीक नहीं लगता। इससे तो सचमुच निठल्लोंका एक पूरा समुदाय ही खड़ा हो जायेगा। हर सच्चे सार्वजनिक कार्यकर्त्ताओंको कांग्रेसकी किसी-न-किसी शाखामें सेवक बनकर रहने और उसके लिए पारिश्रमिक लेनमें गर्वका अनुभव करना चाहिए।

स्वराज्यदलको प्रान्तीय विधान परिषदों और विधान सभामें कांग्रेसका प्रतिनिधित्व करनेका अधिकार देते हुए आपने एक तरहसे कोरे कागजपर दस्तखत कर दिया है। क्या ऐसा करते समय आप इस ओरसे पूरी तरह आश्वस्त थे कि वे लोग आपकी बात मानकर चलते रहेंगे? क्या उस दलके नेताओं द्वारा हालमें कही गई बातोंसे यह प्रकट नहीं होता कि वे कांग्रेसके किसी प्रस्तावके अनुसार अपने सिद्धान्त या कार्यक्रममें परिवर्तन करने के बजाय उससे निकल जाना ज्यादा पसन्द करेंगे?

स्वराज्यदलको किसी भी अर्थमें कोरे कागजपर दस्तखत करके नहीं दिये गये है। प्रश्नकर्त्ताका ऐसा खयाल करना गलत है। मुझे पूरा भरोसा है कि यह दल—स्वराज्यदल—कांग्रेसकी हर सुव्यक्त रायको मानकर चलेगा—फिर उसका कारण सिर्फ यही क्यों न हो कि एक लोकतांत्रिक संस्था होने के नाते उसे हर बातमें जनमतके समर्थनपर निर्भर करना है।

आपने चरखा संघकी जो स्थापना की है, उससे मुझे लगता है कि चूंकि कांग्रेसको आपने स्वराज्यवादियोंके हाथमें सौंप दिया है, इसलिए अब आप अपना रचनात्मक कार्यक्रम कांग्रेसको मुख्य प्रवृत्तिके रूपमें न चलाकर एक गौण प्रवृत्तिके रूपमें ही चलायेंगे। अगर ऐसा है, तो क्या आप कांग्रेससे लगभग अलग ही नहीं हो रहे हैं