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१६८. असहयोगियोंका हश्र

एक भाई पूछते हैं :
अगर आप सब कुछ स्वराज्य दलके सुपुर्द कर देंगे तो उनका हन क्या होगा जिन्होंने असहयोगको अपना राजनीतिक धर्म बना लिया है?

प्रश्नकर्त्ता भूल जाते हैं कि आज भी मै उतना ही पक्का असहयोगी हूँ जितना पहले था और यह मेरा राजनीतिक ही नहीं, बल्कि पारिवारिक और सामाजिक धर्म भी है। जैसा कि मैंने इन पृष्ठों में बार-बार कहा है, अवस्था-विशेष और परिस्थितिविशेषमें असहयोगकी सम्भावना रखे बिना स्वेच्छया और कल्याणकर सहयोग असम्भव है। कांग्रेस किसी व्यक्तिके लिए उसका धर्म निर्धारित नहीं करती। वह तो एक संवेदनशील बैरोमीटर (वायुभार मापक यन्त्र) है, जो समय-समयपर भारतके राजनीतिक दृष्टिसे जागरूक लोगोंकी बदलती हई भावनाका संकेत देता रहता है। कोई भी कांग्रेसी अपने राजनीतिक धर्मके खिलाफ काम करने के लिए बाध्य नहीं है। लेकिन, उसे असहयोगको आगे बढ़ानेके लिए कांग्रेसके नामका उपयोग करनेकी छूट नहीं है। इस प्रस्तावके अन्तर्गत ऐसी व्यवस्था है कि कांग्रेसकी प्रतिष्ठा और उन आर्थिक साधनोंका उपयोग, जो किसी विशेष कामके लिए निर्धारित करके नहीं रखे गये हैं, स्वराज्यवादियोका कौंसिल-नीतिको ही सफल बनाने के लिए किया जायेगा, और इसलिए कांग्रेस संगठनोंको न केवल स्वराज्यवादियोंकी नीतिको आगे बढ़ाने के लिए पैसे आदि मंजूर करने का अधिकार है, बल्कि उनके लिए यह लाजिमी है कि जहाँ कहीं वे कौंसिलों सम्बन्धी प्रचारके लिए पैसा खर्च करें, वहाँ वे उसका उपयोग स्वराज्यवादियोंकी नीतिकी सफलताके लिए ही करें। इसके विपरीत, ऐसा कोई भी कांग्रेससंगठन, जिसमें सदस्योंका स्पष्ट बहुमत किसी भी विशुद्ध राजनीतिक कार्यके लिए पैसा खर्च करने या जुटाने के विरुद्ध हो, इस प्रस्तावकी रूप से अपनी इच्छाके विरुद्ध वैसा करने के लिए बँधा हआ नहीं है। कांग्रेसके सभी प्रस्ताव मार्ग-दर्शन और दिशादर्शनके लिए हैं। वे किसीके साथ जोर-जबर्दस्ती करने के लिए नहीं हैं।

पत्र-लेखक आगे पूछते हैं कि

असहयोगके विषयमें चरखा संघकी स्थिति क्या होगी?

संघका राजनीतिक असहयोगसे कोई सरोकार नहीं है। संघके विधानको प्रस्तावना ही ऐसी है कि उसके लिए राजनीतिकी कोई गुंजाइश नहीं रह जाती। मैं इस संघका अध्यक्ष हूँ, लेकिन एक पक्के असहयोगीकी हैसियतसे नहीं, बल्कि एक प्रबल खादी-प्रेमीके रूपमें। यह लोकोपकारी उद्देश्योंसे गठित एक व्यापारिक या आर्थिक संगठन है। यह खादीका व्यापार तो करेगा, लेकिन सदस्यों के लाभार्थ नहीं, राष्ट्रके लाभार्थ सदस्यगण लाभांश प्राप्त करनेके बजाय इसमें वार्षिक चन्दा दिया करेंगे, ताकि उनके चन्देसे राष्ट्र लाभान्वित हो सके। इसके दरवाजे राजनीतिक विचार रखनेवाले