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सम्पू्र्ण गांधी वाङ्मय

प्रेमसे आलिंगन करके अपनेको पवित्र माना था। इस कलिकालमें चाण्डाल कौन है? अथवा कौन नहीं है? शास्त्रोंका अनर्थ न करें। बाप-दादाके कुएँमें कूदकर मरें नहीं बल्कि उसमें तरें। जो जगत् मान्य नीतिसे विरुद्ध हो वह शास्त्र अथवा रिवाज त्याज्य है। वेदोंमें यदि कोई गोमेध अथवा पशु हिंसाका प्रतिपादन करे, तो क्या हम उसके लिए वैसा करनेको तैयार हैं?

आपके यहाँ हिन्दू-मुसलमानका प्रश्न ही नहीं है; और यदि हो तो मैंने इस समस्याको हारकर छोड़ दिया है। लेकिन मैं मानता हूँ कि जैसे गजराजने पराजित होनेपर ही ईश्वरकी सच्ची स्तुति की, उसी तरह मैं भी पराजित होनेपर भी दोनोंकी रक्षाके निमित्त ईश्वरकी सच्ची स्तुति कर रहा हूँ। विषम समयमें तपश्चर्या करनी चाहिए, ऐसा धर्मका कहना है। तपश्चर्या अर्थात् आत्मशुद्धि, आत्म-ज्ञान, आत्मदर्शन। यदि हममें से कुछ लोगोंके अन्तःकरण भी शुद्ध है तो लड़ने के बावजूद अन्ततः फल कल्याणकारी ही होगा। बहनोंसे मैंने हमेशा यही कहा है कि मेरा स्वराज्य रामराज्य—धर्मराज्य है। यह रामराज्य उपर्युक्त बातोंके बिना तो कदापि नहीं मिल सकता। लेकिन जो हिन्दू हैं उनके लिए तो धर्मराज्य तबतक असम्भव है, जबतक वे गोरक्षा धर्मका भी पालन नहीं करते। गोरक्षाका पालन चाहे जैसी गोशालाकी स्थापना करके नहीं हो सकता। इस सम्बन्धमें व्यावहारिक कार्य मैंने बहुत देरसे शुरू किया है, लेकिन यदि आप जैसोंकी सहायता मिली तो वह सिद्ध हो सकता है। मैं देखता हूँ कि असंख्य गौओं, बैलों तथा भैंसों इत्यादिकी हत्या बिलकुल रोकी जा सकती है। इसमें केवल ज्ञानकी, उद्यमकी और धनको आवश्यकता ही है। धन तो बहुत दिया जाता है। लेकिन मेरे विचारानुसार ज्ञानके अभावमें उसका उपयोग गलत ढंगसे होता है। इतना तो मैंने आपके विचार करने के लिए लिख डाला है। इन सब बातोंपर आप अच्छी तरह से विचार करें। चूंकि आप मुझे बहुत आराम देनेवाले हैं, इसलिए यदि आप इन विषयोंपर चर्चा करने का समय निकालेंगे तो हम चर्चा करेंगे। मेरी विचारपद्धतिमें भूल हो तो वह आप मुझे बतायेंगे, न हो तो मुझे पूरी मदद देंगे।

आपका मित्र और सेवक
मोहनदास करमचन्द गांधी

[गुजरातीसे]
नवजीवन, ४–१०–१९२५