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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

भी आपके मनको मेरे मतके अनुसार चलनेका पूरा सन्तोष मिलता हो। मैं तो प्रबल स्वातंत्र्य वृत्तिसे युक्त एक लड़केको भी शिक्षा देकर बिलकुल खुश रहूँगा। आपने जिस सीमित ढंगकी "मान्यता" की चर्चा की है उसे प्राप्त करने के पक्षमें आप जोकुछ भी कह रहे हैं, उस सबको मैं भलीभांति समझता हूँ और उसकी कद्र भी करता हूँ और आपका यह विचार ध्यान देने योग्य है। इसलिए अगर सभी दष्टियोंसे विचार करके आप इस निष्कर्षपर पहुँचें कि मान्यताके लिए प्रार्थना-पत्र देना आपके और जिन लोगोंके बीच आप काम कर रहे हैं, उन सबके हकमें सबसे अच्छी बात है तो मुझे आपके बारेमें कोई गलतफहमी नहीं होगी।

हृदयसे आपका,
मो॰ क॰ गांधी

अंग्रेजी पत्र (जी॰ एन॰ ७१८९) की फोटो-नकलसे।

 

१५९. कच्छी भाई-बहनोंसे

यदि ईश्वरकी इच्छा हुई तो मैं २१ अक्तूबरके दिन कच्छमें अपनी जिन्दगीमें पहली बार कदम रखूँगा[१]। मैं इस समय केवल प्रेमवश वहाँ जा रहा हूँ। अन्य प्रान्तोंने मुझपर दया करके वर्षके अन्ततक के लिए मुझे मुक्त कर दिया है। आप चाहते हैं कि में महाराव साहबके[२] उपस्थित रहते हुए वहाँ आऊँ इसलिए मुझे यह सोचकर दुःख होता था कि यदि मैं अक्तूबरमें नहीं गया तो पिछले ९ महीनोंसे जिस यात्राकी इतनी चर्चा होती रही है वह अप्रैल मासतक के लिए स्थगित हो जायेगी। आपने मुझे आश्वासन दिया है कि कच्छमें आप मुझे आराम ही देनेवाले हैं और साथ ही चरखे तथा खादीके लिए ढेर-सारा पैसा भी। यह मेरे लिए भारी प्रलोभन है।

महाराव साहबसे मिलनेके लिए मैं भी उत्सुक हूँ। मैं राजाओंका विवेकी मित्र और सेवक हूँ। मेरे बड़े-बूढ़ोंने राज्योंकी नौकरी की है। आज भी मैं अपने कुटुम्बियोंको काठियावाड़के राज्यों में अपनी आजीविका प्राप्त करते देखता हूँ।

लेकिन राज्यों के साथका मेरा सम्बन्ध मेरी आँखोंको धोखा नहीं दे सकता। कितने ही राज्योंकी अन्धाधुन्धीसे मैं बेखबर नहीं हूँ। महाराव साहबके राजतन्त्रके सम्बन्धमें लोगोंने मुझे अगणित पत्र भेजे है। मैं उन पत्रोंके सारको तटस्थ भावसे महाराव साहबके सम्मुख रखकर अपना विवेकी मित्रभाव प्रकट करूँगा।

राजा अथवा रैयतसे मुझे मान प्राप्त करनेकी भूख नहीं है। मानसे मैं थक गया हूँ। यदि मुझे इसमें अविवेक बरतने जैसा न लगे तो मैं मानपत्र आदि न लेनेकी शर्त पर ही आऊँ। मुझे 'महात्मा' का जयघोष कठोर लगता है। शोरगुल किसी भी तरह का हो, मैं उससे त्रस्त हो गया हूँ। चरणस्पर्शसे मैं दूर रहना चाहता हूँ। लोगोंके मनमें

 
  1. गांधीजी कच्छमें २२ अक्तूबर, १९२५ को पहुँचे थे।
  2. कच्छराज्य के तत्कालीन शासक।