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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय


गांधीजीने आगे कहा कि इस प्रकार हमारे पास गोशालाओंके लिए ज्यादा पैसा भी आ जायेगा। जो गोशालाएँ हैं, देशमें पैसेकी कमीके कारण उनका काम भी नहीं चल रहा है। यदि हम गायोंको बचाना चाहते हैं, तो हमें इन्हें भी सुधारना होगा।

इसके बाद महात्माजीने हिन्दी और देवनागरी लिपिके प्रचारको चर्चा की और कहा कि कोई पाँच-छः साल पहले भी मैंने इस सम्बन्ध में आपसे बात की थी। उस समय आपने पचास हजार रुपये इस कार्यके लिए दान दिये थे। इस धनका उपयोग दक्षिण भारत में हजारों द्रविड़ लोगोंको हिन्दी सिखाने के लिए किया गया। इसका पूरा हिसाब भी प्रकाशित किया जा चुका है। देशके दक्षिणी भागमें इस सम्बन्ध में काफी काम किया जा चुका है। हिन्दी प्रेस खोले गये हैं। हिन्दीको पत्रिकाएँ प्रकाशित की जा रही हैं, तेलगु-हिन्दी और तमिल-हिन्दी शिक्षिका तथा तमिलमें हिन्दीको कुछ अन्य प्रारम्भिक पोथियाँ भी प्रकाशित की गई हैं। पर अभी भी बहुत काम करना बाकी है। मैं आपसे अनुरोध करूँगा कि आप कमसे-कम देवनागरी लिपिको स्वीकार करके उसका प्रचार करें और दूसरी भाषाओंकी अच्छी-अच्छी रचनाओंको हिन्दीमें प्रकाशित करें। यदि रवीन्द्रबाबूको रचनाओंको देवनागरी लिपिमें प्रकाशित किया जाये तो संस्कृतके जाननेवाले लोग उन्हें समझ सकते हैं।

इस प्रकार महात्माजीने आजकी चारों महत्त्वपूर्ण समस्याओंकी चर्चा करते हुए लोगोंसे अपील की कि अगर आपको पसन्द हो तो इन चारों कामोंमें हाथ बँटायें और यदि ऐसा नहीं करना चाहते हों तो इनमें से जो काम आपको सबसे अच्छा लगे, उसी एक काममें सहायता दें। उन्होंने देशबन्धु स्मारक कोषके लिए भी दिल खोलकर चन्दा देनका अनुरोध किया। इसके बाद उन्होंने फिर उपर्युक्त चारों कामोंकी याद दिलाते हुए अपील की कि आप इनमें से किसी भी एक काममें अथवा अगर इच्छा हो तो सभी में सहायता दें। उन्होंने कहा कि मैं तो यही मानता हूँ कि चारों काम समान रूपसे महत्त्वपूर्ण और धर्मसम्मत हैं। इसके बाद पुनः अस्पृश्योंको चर्चा करते हुए उन्होंने कहा कि जहाँ-कहीं अस्पृश्योंके लिए स्कूल नहीं है अथवा उनके लिए जलकी व्यवस्था नहीं है, वहाँ उनके लिए स्कूल खोलने और जलको व्यवस्था करने के लिए मैं प्रयत्नशील हूँ। मैं उनके लिए अलग मन्दिर भी बनवाना चाहता हूँ। लेकिन जब तक स्वयं अस्पृश्योंमें से हो ऐसे योग्य और मिष्ठ व्यक्ति सामने नहीं आते जो मन्दिरोंकी व्यवस्था कर सकें तबतक इस कामको रोककर रखना पड़ेगा।

महात्माजीने अन्त में उनकी बात ध्यानसे सुननेके लिए श्रोता-समूहके प्रति हार्दिक कृतज्ञता प्रकट करते हुए कहा :

मैं तो स्वयं एक गरीब आदमी हूँ। पर अपनी वस्त्र-हीन बहनोंके लिए कपड़ोंका प्रबन्ध करने के लिए धनी भाइयों की सहायता चाहता हूँ। मैं रामराज्य लाना चाहता हूँ। रामराज्यकी चर्चा में पुरुषोंसे नहीं करता हूँ, क्योंकि मैं जानता हूँ कि अगर बहनें