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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय
यथाशक्ति पूरी सहायता देगी। अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटीकी रायमें भारतको प्रवासियोंके स्वदेश लौटाये जानेकी कोई भी योजना—चाहे उसे स्वैच्छिक वापसीको योजना कहा जाय या अनिवार्य वापसीकी योजना—स्वीकार नहीं को जानी चाहिए। इसके साथ कांग्रेसका यह भी मत है कि संघ संसद द्वारा जिस विधेयकको पास करने के लिए प्रस्तावित किया गया है, वह स्पष्ट रूपसे १९१४ के समझौतेको भंग[१] करता है। अ॰ भा॰ कां॰ कमेटीका सुझाव है कि दक्षिण आफ्रिकामें बसे हुए भारतीयोंके साथ किये जा रहे दुर्व्यवहारके प्रति विरोध व्यक्त करने के लिए कांग्रेसको संस्थाएँ ११ अक्तूबर, १९२५ को सभी दलोंकी सार्वजनिक सभाओंका आयोजन करें।

पूरे भारतमें होनेवाली इन सभाओंकी सफलताके लिए यह जरूरी है कि इस काममें सभी दल और पक्ष हादिक सहयोग दें—उद्योग-वाणिज्य-संघ, यरोपीय और आंग्ल-भारतीय संघ, ईसाई-धर्म-प्रचारक संस्थाएँ आदि भी। मैं ऐसा सहयोग प्राप्त होनेकी आशा भी करता हूँ। इस विषयमें कोई मतभेद नहीं है। और मेरा खयाल है कि भारत सरकार जनमतकी एक स्वरसे की गई प्रबल अभिव्यक्तिका स्वागत करेगी।

१४ लाख जमा करके भी गरीब

एक मित्र लिखते हैं :

मैंने सुना है कि आप संन्यासी होनेका दावा करते हैं, फिर भी आपने अपने तथा अपने आश्रितोंके लिए बड़ी होशियारीसे बहुत अच्छी जीविकाकी व्यवस्था कर ली है, और इस उद्देश्यसे आपने अपनी जायदादका, जो चौदह लाखको है, एक ट्रस्ट बना लिया है, और आप बहुत ही आराम और सुखका जीवन व्यतीत कर रहे हैं। यह सुनकर हममें से कुछ लोग भौंचक्के रह गये हैं। क्या आप मेहरबानी करके जनताको इस विषयमें सही स्थिति बतायेंगे? मुझे खुद इस बातपर विश्वास नहीं हुआ है।

यदि यह सवाल मेरे एक ऐसे ईमानदार सज्जनने, जिन्हें मैं खुद जानता हूँ, न किया होता तो मैं इसकी ओर कोई ध्यान नहीं देता खासकर इसलिए कि कुछ ही मास पूर्व मुझसे अपने व्यक्तिगत खर्चके सम्बन्धमें पूछे गये एक प्रश्नके उत्तरमें मैंने अपने निजी मामलोंकी भी चर्चा कर दी है।[२] मेरे पास अपना कहनेके लिए कभी भी १४ लाख रुपये नहीं थे। जब मैंने अपनी सारी सम्पत्तिका त्याग किया, उस समय मेरे पास जो कुछ था, उसका मैंने एक ट्रस्ट जरूर बना दिया था। पर यह रकम सार्वजनिक कार्योंके लिए थी, उसमें से मैंने अपने उपयोगके लिए कुछ नहीं रखा। फिर भी मैने अपने-आपको संन्यासी कभी नहीं कहा है। संन्यासी बनना बड़ा

 
  1. देखिए खण्ड, १२।
  2. देखिए खण्ड २७, पृष्ठ १५७–५९।