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१३३. पत्र : मणिबहन पटेलको

शनिवार, [२६ सितम्बर, १९२५][१]

चि॰ मणि,

इस पत्रके साथ देवधरका तार भेज रहा हूँ। मुझे लगता है कि इस दरम्यान रुक रहना ही ठीक होगा। लेकिन यदि इस बीच तुम बम्बईके सेवासदनमें रहना चाहो तो मैं प्रबन्ध करूँ या फिर वर्धा जो कन्या-पाठशाला[२] है उसमें काम करनेकी इच्छा हो तो उसका प्रबन्ध करें। जमनालालजी कलकत्ताके स्कूलके बारेमें जानते हैं। उसके लिए वे मना करते है। लेकिन वर्धाकी कन्या-पाठशालामें व्यवस्था करनेकी बात कहते है। वर्धामें तो मराठी ही है और वहाँ तो तुम घर-जैसा महसूस करोगी। इसलिए यह ठीक ही है कि पहला अनुभव वहीं प्राप्त किया जाये।

अब जो इच्छा हो सो मुझे बताना।[३]
मुझे उत्तर पटनाके पतेपर लिखना।

बापूके आशीर्वाद

[गुजरातीसे]
बापुना पत्रो—४ : मणिबहेन पटेलने
 

१३४. खादी कार्यक्रम

निम्नलिखित पत्र आलोचना-प्रधान है; तथापि इस बातको ध्यानमें रखकर कि कार्यकर्त्तागण उससे जो-कुछ ग्रहण करने योग्य है, सो ग्रहण कर सकते है, पत्र प्रकाशित कर रहा हूँ।[४]

मेरा खयाल है कि कार्यकर्त्तागण इस आलोचनाका उलटा अर्थ नहीं लगायेंगे। खादी-सेवकोंका यह धर्म है कि इसमें जो-कुछ उचित है, उसे समझ लें। जिसे टीकाकार लालच कहता है उसे मैं संरक्षण अथवा अंग्रेजी शब्द 'बाउन्टी' अर्थात् मदद कहता हूँ। बहुत समयसे हमने खादीको छोड़ रखा है। जिन लोगोंके मनमें स्वदेशाभिमान कम है अथवा है ही नहीं उनमें खादीका प्रचार करनेके लिए प्रारम्भमें मददकी जरूरत अवश्य पड़ती है। और यह स्वाभाविक ही है। ऐसी मदद हमेशा ही नहीं देते रह

 
  1. साधन-सूत्रके अनुसार।
  2. महिला आश्रम वर्धा।
  3. २० सितम्बर से २९ सितम्बर तथा १२ अक्टूबरसे १५ अक्टूबरतक गांधीजी पटनामें थे।
  4. पत्र नहीं दिया जा रहा है। इसमें पत्र-लेखकने कहा था कि खादीका प्रसार किसानोंके शुद्ध प्रयत्नोंसे ही हो सकता है। बाहरी कार्यकर्त्ताओंके प्रयत्नोंसे नहीं।