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१२५. राष्ट्रीय पंचायत

पिछले साल दिल्लीमें, साम्प्रदायिक विवादोंके निपटारेके लिए एक राष्ट्रीय पंचायत कायम हुई थी। मैं उसका सभापति माना जाता हूँ। दिल्लीसे, फिर पानीपतसे और अब इलाहाबादसे तार और खत मिले है कि मैं वहाँके झगड़ोंका निपटारा करूँ। मुझे बड़े अफसोसके साथ उन लोगोंको सूचित करना पड़ा है कि दोनों जातियों पर अब मेरा कोई प्रभाव नहीं रह गया है। पंचायतसे उसी अवस्थामें लाभ होता है जब उसका प्रभाव लड़नेवाले दोनों पक्षोंपर हो और वे उसके फैसलेके अनुसार चलनेको राजी हों। दिल्लीकी सभाके बादसे अबतक जमाना काफी बदल गया है। इस वक्त तो दोनों पक्षोंके लोग पंचायतके द्वारा निपटारा करानेके बजाय लड़ने के लिए ही ज्यादा संगठित है। किन्तु इसमें कोई सन्देह नहीं है कि अन्तमें उन्हें मिलना ही होगा। पर ऐसा मालूम होता है कि यह तब होगा जब दोनों आपसमें तलवारें लेकर निपट चुके होंगे। मैं समझता हूँ कि मुझे अपनी सीमाओंका ज्ञान है और मेरा विश्वास है कि मेरा किसी किस्मके साम्प्रदायिक झगड़ोंके बीचमें न पड़ना ही शान्ति और सुलहके कार्यके लिए अधिक अच्छा रहेगा।

[अंग्रेजीसे]
यंग इंडिया, २४-९-१९२५
 

१२६. टिप्पणियाँ

मेरे नामका दुरुपयोग मद्रासके एक सज्जनने मेरे नाम एक छपी हुई खुली चिट्ठी भेजी है। उसमें उन्होंने तमिलनाडमें स्वराज्यवादियों द्वारा किये गये दुष्कृत्योंका वर्णन किया है और मुझे बताया है कि किस प्रकार नगरपालिकाके चुनावोंमें मेरे नामका दुरुपयोग किया गया है। उसके कुछ उदाहरण नीचे दिये जाते है।[१]

यदि यह वर्णन सही है तो अवश्य ही जो-कुछ हो रहा है, वह निन्दाके योग्य है। लेखक मुझसे कहते हैं कि मैं इन तरीकोंसे अपनेको अलग रखूँ। उनके सुझावका या तो यह अर्थ है कि वे मुझे जानते नहीं है, क्योंकि मैं तो कई बार असत्य, हिंसा और गुण्डागर्दीके खिलाफ अपनी कड़ीसे-कड़ी नापसन्दगी जाहिर कर चुका है; यहाँतक कि जब भी मेरे नामका दुरुपयोग किया गया और मुझे लगा कि मेरी स्थितिके सम्बन्धमे

 
  1. यहाँ नहीं दिया जा रहा है। पत्रमें वचन भंग, रिश्वत, भ्रष्टाचार, गांधीजीके नामका दुरुपयोग और उसके लिए स्वार्थसाधन, मतदाताओंको गलत बातें बताना या उन्हें शराब पिलाना आदिके उदाहरण दिये गये थे।