पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 28.pdf/२५२

यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
२२४
सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

पक्षमें हूँ। असहयोगके सिद्धान्तमें मेरा वैसा ही विश्वास अब भी है जितना कि हिन्दूमुस्लिम एकतामें है। लेकिन आज मुझे दोनों जातियोंमें वह एकता दिखाई नहीं देती, इसीलिए आज मैं उसके बारेमें कुछ न कहकर आपसे खद्दरके बारेमें ही फिर कुछ कहना चाहूँगा। जो हिन्दू और मुसलमान भारतको अपना देश मानते हैं उनके लिए खादीका बहुत महत्त्व है।

आपको यह समझ लेना चाहिए कि हिन्दू और मुसलमान, दोनोंके लिए गाँवके गरीबों द्वारा काते गये सूतसे बने खद्दरको छोड़कर अन्य वस्त्र धारण करना पाप है। हिन्दू और मुसलमान जी-भरकर एक दूसरेसे लड़ लें, एक दूसरेके सिर फोड़कर खून की नदियाँ बहा दें। पर सरकारको उसमें हस्तक्षेप न करने दें। वे यह सब करें, इतने पतित भले हो जायें, लेकिन अब यह कहना छोड़ दें कि हम पहनेंगे तो बस मैन्चेस्टर, लंकाशायर या जापान या बम्बईकी मिलोंको कपड़ा ही पहनेंगे। खद्दरको छोड़कर बम्बईकी मिलोका कपड़ा भी पहनना ठीक नहीं। आप अच्छी तरह जानते हैं कि भारतके गांवों में ऐसे लाखों हिन्दू और मुसलमान हैं जिन्हें दोनों वक्त खाना भी नसीब नहीं होता। अपनी हालकी बंगालकी यात्राके दौरान वहाँके गाँवोंमें ऐसे लोगों की दयनीय दशा में अपनी आँखों देख आया हूँ। यदि आप उन्हें मेरी नजरसे देख सकें तो आपकी आँखें भी भर आयेंगी। अतराईके समीपवर्ती गाँवोंमें ९० प्रतिशत लोग मुसलमान हैं। इसी क्षेत्रमें बाबू सतीश चन्द्र दासगुप्त, डाक्टर प्रफुल्लचन्द्र रायके निर्देशनमें अपना खादी प्रचार कार्य चला रहे हैं। इसके फलस्वरूप इस क्षेत्रकी स्त्रियाँ यदि महीने में दो ढाई रुपये भी कमा पाती हैं तो बहुत प्रसन्न होती हैं। जिन्हें किसी प्रकारको कमी नहीं है, सम्भव है वे इसके महत्त्वको न समझें और इसका मजाक उड़ायें। परन्तु खेतीसे जिन परिवारों की कुल आय ७ रुपये प्रतिमास है उनके लिए ये दो ढाई रुपये भी बहुत हैं। जो सिपाही और अर्दली सरकारी नौकर हैं वे भी इसका महत्त्व आसानीसे समझ सकते हैं। अपने वेतन में एक रुपये की भी तरक्की होनेपर वे निहायत खुश होते हैं और अपने अफसरोंका बहुत आभार मानते हैं। अन्तमें गांधीजीने भावविह्वल होकर लोगोंसे अनुरोध किया कि वे गाँवोंमें भूखों मरनेवाले लाखों लोगोंकी खातिर खादी और चरखको अपनायें। इन्हीं गरीबोंकी खातिर कताई करें और सूत मुझे दें, ताकि मैं खादीको सस्ता कर सकूँ। इसका लाभ मुख्यतया तो इन भूखसे पीड़ित गरीबोंको होगा, पर अन्तमें इससे सबको लाभ होगा। मैंने एक मुसलमानको यह कहते सुना है कि क्या महात्माजीका दिमाग खराब हो गया है जो वे आशा कर रहे हैं कि मुसलमान खद्दर पहनने लगेंगे। संयुक्त प्रान्तके मुसलमानोंको तो पहनने के लिए नैनसुख और मलमल-जैसा बढ़िया कपड़ा चाहिए। उन्हें मोटा और घटिया खद्दर अच्छा नहीं लगता। मैं उनसे सहमत नहीं हूँ। मुसलमान भी भारतमें पैदा हुए हैं और भारतके ही हैं। उनमें भी मानवीयताकी भावना है और उनको भी गाँवोंके लाखों भूखे-गरीबोंसे हमदर्दी है। मुझे आशा है कि वे भी खद्दरको अपनायेंगे,