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भाषण : अ॰ भा॰ कां॰ कमेटीकी बैठक, पटनामें

होगा। पर वह कांग्रेसको साखका उपयोग करेगा और कांग्रेसकी सहायता करेगा। कुछ लोगोंका विचार है कि अखिल भारतीय चरखा संघको कांग्रेससे पृथक् एक स्वतन्त्र संगठन होना चाहिए और उसे अपनी साख स्वयं बनानी चाहिए। अखिल भारतीय खादी बोर्ड और उसका धन कांग्रेसको सम्पत्ति है। आप कह सकते हैं कि आप अखिल भारतीय खादी बोर्डको धन-सम्पत्ति संघको नहीं सौंपना चाहते हैं। आपको ऐसा कहनेका पूरा अधिकार है। लेकिन अखिल भारतीय चरखा संघ इस विचारसे बनाया गया है कि वह सक्रिय रूपसे काम करनेवाला संगठन हो। उसकी स्थापनाके पीछे दूसरा कोई विचार नहीं है। योजना यह है कि वह एक शुद्ध व्यावसायिक संगठन हो जो खादीके आर्थिक पक्षपर ही ध्यान दे। महात्माजीने कहा कि मैं अच्छी तरह जानता हूँ कि अकेले खद्दरमें सविनय अवज्ञाके लिए अनुकूल वातावरण तैयार करनेकी सामर्थ्य नहीं है। ऐसी सामर्थ्य उसमें आये, यह तो हमपर निर्भर है, और कुछ लोगोंको लगता है कि वे उसे इतना सामर्थ्यवान बना सकते हैं। जिन लोगोंको सविनय अवज्ञामें विश्वास है वे भारतमें ऐसी शक्तिका निर्माण करना चाहते हैं जो सबको संगठित कर सके; एकसूत्रमें बाँध सके। खद्दरका राजनीतिक महत्त्व इसीमें है। अखिल भारतीय चरखा संघ अंग्रेजोंसे संघका सदस्य बननेका अनुरोध करेगा। वह सर अली इमामसे सदस्य बनने का अनुरोध करेगा, बशर्तें कि वे खद्दर पहनना स्वीकार करें। यदि महाराजा बीकानेर भी खद्दरका उपयोग करने लगें तो संघ उनसे भी सदस्य बननेका अनुरोध करेगा। इस प्रकार, अखिल भारतीय चरखा संघके पास विदेशी कपड़ेका बहिष्कार करने के साधन तथा सामर्थ्य, दोनों होंगे। यद्यपि यह हमारे लिए लज्जाकी बात है, पर स्वीकार तो करना ही पड़ता है कि हम अभीतक विदेशी कपड़ेका बहिष्कार नहीं कर पाये है।

यदि आप अखिल भारतीय खादी बोर्डका धन [संघको] खुशी-खुशी देना चाहें तो दे दें। पर कांग्रेस चरखा संघको नीति निर्धारित नहीं कर सकती। उसकी और कांग्रेसको सदस्यताकी शर्तें एक-सी नहीं होंगी। पर यदि कांग्रेस चाहेगी तो वह एक एजेंसीके रूपमें कांग्रेसका काम करेगा। चरखा संघ कौन बनायेगा, यह प्रश्न किये जानपर महात्माजीने कहा :

मैं बनाऊँगा। यह एक छोटा-सा संगठन होगा। मैंने अभी सदस्योंकी संख्याका निर्णय नहीं किया है।

पर संघकी नीतिपर कांग्रेस कोई नियन्त्रण नहीं लगा सकती।

महात्माजीने कहा कि मेरे पास बहुतसे संशोधन आये हैं उन्हें एकके-बाद एक पेश करने के बजाय मैं इन संशोधनोंके मुख्य मुद्दे आपके सामने रखता हूँ और उनपर आपका मत लेता हूँ।

महात्माजीने सबसे पहले इस मुद्देपर मत लिया कि धनकी शर्तके साथ-साथ विकल्पके रूपमें सदस्यताके लिए कताईकी शर्त भी रहे या नहीं।