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खेतीमें हिंसा?

गुजरातका, हिन्दुस्तानका और जगतका भला है, क्योंकि इस प्रवृत्तिमें किसीके प्रति वैरभाव नहीं है।

[गुजरातीसे]
नवजीवन, २०–९–१९२५
 

११४. खेतीमें हिंसा?

'नवजीवन' के एक नियमित पाठक पूछते है[१] :

यह बात सच है कि खेतीमें सूक्ष्म जीवोंकी अपार हिंसा होती है। पर दूसरी यह बात भी उतनी ही सच है कि शरीरनिर्वाहमें, साँस खींचने-छोड़ने तकमें अनन्त सूक्ष्म जन्तुओंकी हिंसा होती है। परन्तु जिस प्रकार आत्म-घात कर लेने से शरीर-रूपी पिंजरेका सर्वथा नाश नहीं हो जाता, उसी प्रकार खेतीके त्यागसे खेतीका भी नाश नहीं होता। मनुष्य मिट्टीका पुतला है। मिट्टीसे उसका शरीर बना है और मिट्टीके विभिन्न रूपोंपर उसका जीवन निर्भर है। खेतीमें निहित दोषसे बचने के लिए जो भिक्षान खाता है वह दोहरे दोषका भागी होता है। खेती करनेका दोष तो वह करता ही है, क्योंकि भिक्षामें मिला अन्न किसी-न-किसी किसानकी मेहनतसे पैदा हुआ है, उस किसानकी खेती में भिक्षान्न ग्रहण करनेवाला भागीदार हुए बिना नहीं रहता। तिसपर वह अज्ञान और उससे उत्पन्न होनेवाले आलस्यका दोषी भी बनता है।

यदि एक मनुष्यके लिए खेतीका त्याग उचित मानें तो वह अनेकोंके लिए भी उचित होगा। यदि अनेक लोग भीख माँगकर खावें तो बेचारे थोड़ेसे किसान भिखारियोंके लिए मंजूरी करने के बोझसे ही कुचल जायें; फिर यह पाप भिखारीके सिर नहीं तो और किसके सिर होगा? खेती इत्यादि आवश्यक कर्म शरीर-व्यापारकी तरह अनिवार्य हिंसाके अन्तर्गत हैं। उसमें निहित हिंसा चली तो नहीं जाती किन्तु मनुष्य ज्ञान, भक्ति आदिके द्वारा, इन अनिवार्य दोषोंसे मोक्ष प्राप्त करके इस हिंसासे भी मुक्त हो जाता है। इसलिए शरीर जिस प्रकार मनुष्यके लिए बन्धनका द्वार है, और मोक्षका द्वार भी है; ठीक उसी प्रकार जो करोड़पति होनेके लिए खेती करता है, खेती उसके लिए बन्धनका द्वार है और जो केवल आजीविकाके लिए खेती करता है उसके लिए वह मुक्तिका द्वार हो सकती है।

कार्य-मात्र, प्रवृत्ति-मात्र, उद्योग-मात्र सदोष है। आवश्यक उद्यम-मात्रमें समान दोष पाया जाता है। मोतीके रोजगारमें, रेशमके धन्धेमें, सुनारके पेशेमें खेतीकी अपेक्षा बहुत अधिक दोष हैं क्योंकि ये धन्धे आवश्यक नहीं है। उनमें हिंसा तो अत्यधिक है ही। मोती हिंसाके बिना नहीं मिल सकते। रेशमका कीड़ा उबाला जाता है। सुनार जो नीली लौ पैदा करता है यदि उसमें जलनेवाले जन्तुओंसे पूछे और वे जवाब दें सकें तो हमें उसके धन्धेकी हिंसाका कुछ अन्दाज हो सके।

 
  1. यह पत्र यहाँ नहीं दिया गया है। उसमें लेखकने खेतके प्रति अपनी रुचि दिखाई थी; किन्तु उसमें निहित हिंसाके कारण विरक्तिकी बात कही थी।