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१०६. अमेरिकाके मित्रोंसे

मुझे कितने ही अज्ञात यूरोपीय और अमेरिकी सज्जनोंकी मित्रताका सौभाग्य प्राप्त है। मुझे यह लिखते हुए खुशी होती है कि ऐसे मित्रोंकी संख्या बढ़ती जा रही है, खासकर अमेरिकामें। कोई एक साल पहले मुझे अमेरिका आनेके लिए प्रेमपूर्ण निमन्त्रण मिला था। अब वही निमन्त्रण और भी आग्रहपूर्वक दिया गया है। सो भी मेरा तमाम खर्चा उठानेके आश्वासन सहित। मैं उस कृपा-पूर्ण निमन्त्रणको करनेमें तब भी असमर्थ था और आज भी हूँ। उसे स्वीकार करना तो बड़ा आसान काम है; पर मुझे इस प्रलोभनमें नहीं पड़ना चाहिए, क्योंकि मेरा दिल कहता है कि जबतक भारतके शिक्षित और प्रबुद्ध लोगोंको अपनी बातसे कायल न कर सकूँ तबतक मैं उस महान् देशके लोगोंके दिलोंमें अपने विचार प्रभावकारी ढँगसे न बैठा पाऊँगा।

मुझे अपनी मूलभूत स्थितिकी सच्चाईके बारेमें तो कोई सन्देह है ही नहीं। पर मैं जानता हूँ कि अभी मैं अधिकांश शिक्षित लोगोंको उसका कायल करने में समर्थ नहीं हो रहा हूँ। इसलिए मैं जबतक भारतके शिक्षित-समुदायसे अलग-थलग हूँ तबतक मैं अमेरिकी या यूरोपीय मित्रोंसे अपने देशके लिए कोई कारगर सहायता नहीं प्राप्त कर सकता। हाँ, मैं विचार करते समय समस्त संसारके हितको दृष्टिमें रखना चाहता हूँ। मेरी देशभक्तिमें सामान्यतः सारी मानव-जातिका हित समाविष्ट है। अतएव मेरी भारत-सेवामें सारी मनुष्य-जातिकी सेवाका अन्तर्भाव हो जाता है। पर मुझे लगता है कि यदि मैं उसे छोड़कर पश्चिमकी सहायता प्राप्त करनेके लिए वहाँ जाऊँगा तो यह ने दायरेसे बाहर जाना होगा : इसलिए फिलहाल तो मुझे भारतके अपने संकुचित मंच ही से पुकारकर पश्चिमसे जो-कुछ सहायता मिल सके उसपर सन्तुष्ट रहना चाहिए। यदि मुझे अमेरिका और यूरोप जाना ही हो तो अपनेको शक्तिमान् बनाकर जाना चाहिए, न कि अपनी कमजोरीकी हालतमें, जो कि मैं महसूस करता हूँ कि आज है। अपनी कमजोरीसे मेरा मतलब देशकी कमजोरीसे है। क्योंकि भारतकी आजादीकी सारी योजनाका दारोमदार उसकी भीतरी ताकतके विकासपर है। वह योजना आत्म-शुद्धिकी योजना है। अतएव पश्चिमके राष्ट्र भारतीय आन्दोलनकी सर्वोत्तम सहायता अपने विशेषज्ञोंको उस योजनाके मर्मको समझने तथा उसका अध्ययन करने के लिए भेजकर ही कर सकते हैं। वे अपने दिल और दिमागको खुला रखकर और सत्य-शोधकके विनयभावको लेकर यहाँ आयें। तब शायद वे उसकी वास्तविक स्थितिको देख पायेंगे, वरना यदि मैं अमेरिका गया तो पूर्ण सत्यनिष्ठ रहनेके निश्चयके बावजूद सम्भव है कि उनके सामने मेरे द्वारा भारतका गौरवान्वित रूप ही पेश हो। लिखित अथवा कथित शब्द-बलकी अपेक्षा मैं विचार-शक्तिमें अधिक विश्वास रखता हूँ। और यदि जिस आन्दोलनका में प्रतिनिधित्व करना चाहता हूँ उसमें जीवनीशक्ति होगी और ईश्वरका वरद हस्त उसपर होगा तो संसारके विभिन्न देशोंमें में