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अछूतों के सम्बन्धमें


मैं तो पण्डितोंपर एक पैसा भी खर्च करने को तैयार नहीं हूँ। यदि आप उन्हें पैसा देंगे तो वे गोया किरायेके ट्टटू हो जायेंगे। वे वेतनके लिए ही काम करेंगे। पैसा तो पंचमों को अपनी उचित स्थितिका भान करानेके लिए खर्च किया जाना चाहिए। हमारे साधन हमेशा शान्तिमय हो। तथाकथित सवर्ण हिन्दुओंको अपनी मनोवृत्ति बदलनी चाहिए और अपनी ही आत्माकी उन्नति और अपनी ही शुद्धिके लिए उन्हें यह निषेध हटा देना चाहिए। यदि वे ऐसा न करेंगे और उन्हें दबानेपर तुले रहेंगे तो एक समय ऐसा आयेगा कि जब खुद अछूत लोग ही हमारे खिलाफ बगावतका झण्डा खड़ा करेंगे और तब सम्भव है कि वे हिंसात्मक तरीकोंका भी आश्रय लें। मैं अपनी तरफसे ऐसे किसी भी महासंकटको रोकनेका पूरा प्रयत्न कर रहा हूँ और हममें से जो लोग अस्पृश्यताको पाप मानते हैं, उन सबको ऐसा ही करना चाहिए।

३. क्या आप यह मानते हैं कि सिर्फ पंचम लोगोंके लिए खोले गये पृथक् स्कूलोंसे अस्पृश्यता-निवारणमें किसी तरह सहायता मिल सकती है?

ऐसे स्कूलोंसे अन्ततः सहायता अवश्य मिलेगी; किसी भी प्रकारकी शिक्षा इस दिशामें सहायक होगी। परन्तु ऐसे स्कूल अकेले अछूतों ही के लिए न होने चाहिए, अन्य जातियोंके लड़के भी उनमें लिये जाने चाहिए। अभी तो वे न आयेंगे, परन्तु यदि शालाओंकी व्यवस्था अच्छी रही तो समय पाकर उनका पूर्वाग्रह मिट जायेगा। यदि आप ऐसी मिश्रित शालाएँ चाहते हैं तो आपको अपने क्षेत्रमें ऐसी एक पाठशाला खोलनी चाहिए। मान लीजिए कि आपका अपना घर है, तो आपसे कोई अपने घरसे निकल जानेको तो नहीं कह सकता। एक "अछूत" लड़केको अपने घरमें ले जाइए और पाठशाला शुरू कर दीजिए। फिर और लड़कोंको भी उसमें भरती होनेके लिए प्रेरित कीजिए।

४. हमारे प्रान्तमें ऐसो शालाओंको प्रोत्साहन दिया जा रहा है, जिनमें 'अस्पृश्य' तथा सवर्ण लड़के साथ-साथ पढ़ते हैं।

हाँ, आप उनको प्रोत्साहन दे सकते है। परन्तु आपको उन स्कूलों या संस्थाओंकी सहायता करनेसे हाथ न खींचना चाहिए, जिनमें सिर्फ 'अस्पृश्य लड़के ही पढ़ते हों।

५. कुछ ताल्लुका बोर्डोंमें ऐसे हुक्म जारी हुए हैं कि जो शालाएँ 'अस्पृश्य' लड़कोंको लेनेसे इनकार करेंगी, वे बन्द कर दी जायेंगी। क्या हम अपने प्रचारकों द्वारा पंचम बालकोंको उन स्कूलों में भरती होने में सहायता दें?

अवश्य। आपको उनकी सहायता अवश्य करनी चाहिए। पर अलगसे इसीके लिए प्रचारक रखने की जरूरत नहीं है। आपके कार्यकर्ता ही उसके लिए काफी होंगे।

६. तो फिर प्रचार-कार्यके बारे में आपको क्या राय रही? क्या आप समझते है कि चुपचाप काम करते रहना पर्याप्त है?

हाँ, मैं तो ऐसा ही समझता हूँ। अगर प्रचार-कार्यके पीछे पंचमोंकी स्थिति सुधारनेके लिए ठोस कामका बल न होगा तो प्रचारसे कोई लाभ नहीं होगा।

इस सिलसिले में महात्माजीने वाइकोम-सत्याग्रहका जिक्र किया और कहा कि उस क्षेत्रके लोगोंपर उसका बड़ा भारी असर हुआ है।

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