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८०. भारत और दक्षिण आफ्रिका

डर्बनमें भारतीयोंकी एक सार्वजनिक सभा हुई थी, जिसकी अध्यक्षता श्री आमद भायातने की थी। उन्होंने निम्नलिखित तार भेजा है :

संघको संसदमें पेश किये गये एशियाई विधेयकके[१] परिणाम बहुत दूरगामी होंगे। यह विधेयक अन्यायपूर्ण है और भारतीयोंके हितोंके लिए घातक है। इसका मतलब निहित हितों को मान्यता देनेवाले गांधी-स्मट्स समझौतेको[२] जानबूझकर भंग करना है। विधेयकमें निवास और व्यापारके लिए क्षेत्र निर्धारित करने की व्यवस्था है, और भारतीय इन क्षेत्रोंके भीतर ही सम्पत्ति खरीद अथवा पढ़ेपर ले-दे सकते हैं। ग्रामीण क्षेत्रों में भारतीय समुद्र तटसे तीस मीलके भीतर ही सीमित रहेंगे; और वहाँ भी क्षेत्र निश्चित किये जा सकते हैं। इसका नतीजा यह होगा कि वर्तमान पट्टोंकी अवधि पूरी होनेपर हजारों भारतीयोंका कारोबार बन्द हो जायेगा। इसका अर्थ है, भारतीयोंका अनिवार्य पृथक्करण और उन्हें अपनी सम्पत्तिसे जानबूझकर वंचित करना। स्पष्ट है कि इसका अन्तिम उद्देश्य भारतीयों को स्वदेश लौटाना और उनके अधिकारोंका अपहरण करना है। संघमें प्रवेश का वैध अधिकार रखनेवाले भारतीयोंके संघमें प्रवेश करनेका अधिकार गम्भीर खतरेमें है। विधेयकमें कई ऐसी धाराएँ हैं, जिनके बलपर सरकार भारतीयोंको निषिद्ध प्रवासी घोषित कर सकेगी और उन्हें व्यवहारतः उनके अधिवासके अधिकारोंसे वंचित कर सकेगी। केवल तीन वर्षतक संघसे बाहर रहते-भरसे ये अधिकार छिन जाते हैं। अधिवासी भारतीयोंके स्त्री और बच्चे अगस्त १९२५ के बाद पाँच वर्ष हो जानेपर संघमें प्रवेश नहीं कर सकते। तीस-तीस वर्षोंसे यहाँ रहनेवाले हजारों भूतपूर्व गिरमिटिया भारतीय और उनके वंशज निषिद्ध प्रवासी घोषित किये जा सकते हैं और वे अधिवासके अधिकारका दावा नहीं कर सकते। दक्षिण आफ्रिकामें उत्पन्न ऐसे भारतीयोंको, जो संघके किसी प्रान्तके अधिवासी हो गये है, अपने जन्मके प्रान्तमें लौटना होगा और वहाँ भी उन्हें पृथक् निर्धारित क्षेत्रमें रहना होगा। यहाँ जन्मे हुए भारतीयोंको भी, यदि संघको आवश्यकताओंको देखते हुए अनुपयुक्त माना जाये, तो निषिद्ध प्रवासी घोषित किया जा सकता है। संघमें
  1. यह क्षेत्र-निर्धारण और प्रवास पंजीयन (अतिरिक्त धारा) विधेयक संघीय संसदमें जुलाई १९२५ में पेश किया गया था। इस विधेयक का उद्देश्य एशियाइयोंपर प्रतिबन्ध लगाना था कि वे कुछ विशेष स्थानोंको छोड़कर अन्यत्र भूमि प्राप्त न कर सकें। देखिए "टिप्पणियाँ", ६–८–१९२५ का उपशीर्षक 'साम्राज्यके परिया'।
  2. देखिए खण्ड १२।‌