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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

जिम्मेदार हैं तो हम देखेंगे कि समाजसे बुराई कितनी जल्दी दूर हो जाती है। प्रेमकी एक झूठी भावनामें पड़कर इसे सहन करते है। मैं उस प्रेमकी बात नहीं करता जिसे पिता अपने गलत रास्तेपर चल रहे पत्रपर मोहान्ध होकर बरसाता चला जाता है, उसकी पीठ थपथपाता है; और न मैं उस पुत्रकी बात कर रहा हूँ जो झूठी पितृ-भक्तिके कारण अपने पिताके दोषोंकी सहन करता है। मैं उस प्रेमकी चर्चा नहीं कर रहा हूँ, मैं तो उस प्रेमकी बात कर रहा हूँ, जो विवेकयुक्त है और जो बुद्धियुक्त है और जो एक भी गलतीकी ओरसे आँख नहीं बन्द करता। यह सुधारनेवाला प्रेम है और ज्यों ही हम इस रहस्यको समझ जायेंगे, त्यों ही बुराई दूर हो जायेगी।

मैं दो जातियोंके सम्बन्धोंकी चर्चा कर रहा हूँ। आप उन अनेक बुराइयोंका विचार कीजिए, जो आज हम हिन्दू लोगोंमें समाई हुई हैं। मुसलमानों, पारसियों, ईसाइयों तथा दूसरोंकी बात तो रहने दीजिए। हममें से अधिकतर लोग हिन्दू है। हम उन बुराइयोंसे कैसे निबटें, जो हिन्दू-धर्ममें है? जो लोग अस्पृश्यताको हिन्दू-धर्मका अंग मानते है और उसके पक्ष-समर्थनमें शास्त्रोंके प्रमाण देते हैं, उनसे हम घृणा करें या कि निरन्तर योग्य आचरण करके हम इस बुराइको दूर करें? तो इसका रहस्य है कष्टसहन, बुराई करनेवालोंको कष्ट देना नहीं बल्कि सभी कष्टोंका भार स्वयं अपने सिर ले लेना। अगर हम हिन्दू-धर्ममें प्रविष्ट अनेक बुराइयोंको दूर करना चाहें तो हम वाइकोमके उदाहरणका अनुकरण करके ही वैसा कर सकते हैं। यह मुझे स्वाभाविक रूपसे याद आ गया है, क्योंकि किसी निर्दोष उदाहरणकी कल्पना हम अतीतके किसी प्रशंसनीय उदाहरणके आधारपर ही कर सकते हैं। मैं उन बहादुर नौजवानोंमें से हरएकको जानता हूँ। मेरा खयाल है कि वाइकोममें भयंकर कठिनाइयोंके बीच काम करनेवाले हर व्यक्तिको मैं जानता हूँ। उन्होंने ऐसी कठिनाइयाँ झेली है, जिनका वर्णन मैं यहाँ कुछ क्षणोंमें नहीं कर सकता, लेकिन मैं आपके सामने यह साक्षी भरनेका साहस करता हूँ कि इन नौजवानोंने कहीं तनिक भी भूल नहीं की है—मेरा मतलब है, वाइकोमके नौजवानोंने। मैं यह नहीं कह सकता कि व्यक्तियोंने भूल नहीं की है, लेकिन कुल मिलाकर उन्होंने अपना आचरण बिलकुल निष्कलंक रखा है। परिणाम यह है कि यद्यपि वे अभी इस बुराईको पूरी तरह तो दूर नहीं कर पाये हैं, पर मुझे इसमें जरा भी सन्देह नहीं है कि त्रावणकोरमें अस्पृश्यताके पाँव उखड़ गये है। यह बुराई आज उन मुट्ठीभर नौजवानोंके संकल्पके कारण ही, जिन्होंने अपनेको वाइकोम सत्याग्रहमें झोंक दिया और कष्टोंको खुशी-खुशी अपने सिर ओढ़ लिया, वहाँसे मिटती नजर आ रही है। सचमुच यही इसका रहस्य है। तो फिर मेरी तुच्छ सम्मतिमें घृणा राष्ट्रीयताके लिए जरूरी नहीं है। जातीय घृणा सच्ची राष्ट्रीय भावनाको मार देगी। हमें समझ लेना चाहिए कि राष्ट्रीयता क्या चीज है। हम अपने देशके लिए आजादी चाहते हैं। लेकिन हम दूसरे देशोंके लिए कष्ट नहीं चाहते; हम दूसरे देशोंका शोषण नहीं चाहते; हम दूसरे देशोंका अपकर्ष नहीं चाहते। जहाँतक खुद मेरा सम्बन्ध है, अगर भारतकी आजादीका मतलब अंग्रेजोंका विलोप