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भाषण : राष्ट्रीयतापर


इस सवालपर मैं बहुत मनन करता रहा हूँ और वह १९१५ में भारत लौटनेके बादसे ही नहीं, बल्कि जबसे मैंने सार्वजनिक जीवनमें और सार्वजनिक सेवामें प्रवेश किया, तभीसे अर्थात् १८९४ से। लेकिन मैं काफी विचार करने के बाद इस निष्कर्षपर पहुँचा हूँ कि किसीका देश-प्रेम अर्थात् राष्ट्रीयता उन लोगोंके प्रति प्रेमभाव रखनेसे सर्वथा संगत है, जिनके शासन, जिनकी अधीनता, जिनके तरीकोंको हम पसन्द नहीं करते। दक्षिण आफ्रिकाकी सरकारसे निबटनेमें या अधिक सही शब्दोंमें कहूँ तो पहले तत्कालीन नेटाल सरकारसे, उसके बाद ट्रान्सवाल सरकारसे और अन्तमें संघ सरकारसे निबटने में, मेरा इस सवालसे सीधा साबिका पड़ा। आप लोगोंमें से अधिकांशको वे निर्योग्यताएँ घोर निर्योग्यताएँ मालूम होंगी, जिन्हें हमारे देशभाई उस महाद्वीप दक्षिण आफ्रिकामें झेल रहे हैं। ये निर्योग्यताएँ इतनी काफी हैं कि यदि व्यक्तिका विवेक स्थिर न रहे तो वह अपने साथी मनुष्योंसे घृणा करने लगे। आप वहाँ अन्यायका बोलबाला देखते हैं, जिसका कारण सिर्फ यह है कि आपकी चमड़ीका रंग वैसा नहीं है जैसा कि उन लोगोंकी चमड़ीका है। संघ सरकारके संविधानमें कहा गया है कि गोरे और रंगदार लोगोंके बीच समानता नहीं हो सकती। एक समयमें यह धारा ट्रान्सवालके संविधानमें थी, लेकिन उसी संविधानको अब संघ सरकारने अपना लिया है। भारतमें आकर आप बिलकुल वही चीज तो नहीं, लेकिन लगभग वैसी ही चीज जरूर देखते है और अकसर लोगोंको इन दो भावनाओं अर्थात् देश-प्रेम और जिन्हें आप खूंखार शेर समझ सकते हैं, उनके प्रति प्रेमके बीच मेलबैठा पाना कठिन लगता है। आप जो सोचते हैं, वह न्यायोचित और सही है अथवा गलत है, यह एक अलग बात है, लेकिन आपके मनपर यही छाप पड़ती है कि आप भयंकर किस्मका अत्याचार सहन कर रहे है, घोर अन्यायके शिकार हो रहे हैं। तो फिर आप खूंखार शेरोंको प्यार कैसे कर सकते है?

अब मैं यही बात दूसरे शब्दोंमें कहता हूँ, मेरा, मतलब यह नहीं है कि आप शेरसे प्यार करें ही, लेकिन मैं यह कहना चाहता हूँ कि प्रेम एक सक्रिय शक्ति है और आजकी सभाका विषय यह है —क्या खूंखार शेरसे घृणा करना जरूरी है? क्या देश-प्रेमके लिए दूसरोंसे घृणा करना जरूरी है? आप दूसरोंसे प्यार भले ही न करें, किन्तु क्या जरूरी है कि आप उनसे घृणा करें ही? जैसा कि मैने पहले कहा, बहुत-से लोगोंके मनमें इसका जवाब यही है कि हाँ, आपको घृणा करनी ही चाहिए। मैं जानता हूँ कि कुछ लोग खूंखार शेरसे घृणा करना अपना कर्तव्य समझते है और वे अपनी मान्यताके प्रमाणस्वरूप आधुनिक संविधानके उदाहरण पेश करते हैं; वे यूरोपके गत विनाशकारी महायुद्धका उदाहरण देते हैं; वे उन युद्धोंकी मिसाल देते है जिनके बारेमें उन्होंने इतिहासमें पढ़ा है; वे कानूनका भी उदाहरण देते हैं और कहते हैं कि जो लोग हत्या करनेके अपराधी होते हैं, उन्हें समाज फाँसीके तख्तेपर चढ़ा देता है। क्या यह घृणाका लक्षण नहीं है? बेशक, उसमें प्रेम तो नहीं ही है। लेकिन अगर किसीका पिता या ऐसा ही कोई अन्य अतिप्रिय व्यक्ति फाँसीपर चढ़ा दिये जाने लायक काम करे तो क्या वह उससे प्यार करना छोड़ देगा? वह