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६२. भाषण : यंग मैन्स क्रिश्चियन एसोसिएशन, कलकत्तामें[१]

२५ अगस्त, १९२५

पिछले महीने कलकत्तेके यंगमैन्स क्रिश्चियन एसोसिएशनको कालेज शाखाको एक सभामें गांधीजीसे एक ऐसे विषयपर बोलनको कहा गया, जिसके बारेमें उन्होंने पहले कुछ सोचा नहीं था। स्पष्ट ही कुछ गलतफहमी हो गई थी। वे ऐसा मान रहे थे कि उन्हें "प्राम-संगठन" पर बोलना है, लेकिन उनसे जिस विषयपर बोलनेको कहा गया, वह था, "व्यक्तित्वका महत्त्व और सम्भावनाएँ।" इस विषयपर वे कुछ पशोपेशमें पड़ गये। लेकिन उन्होंने बीचका रास्ता निकाला और उस शामको उन्हें जिस विषयपर बोलना था, उसपर बोलते हुए प्रसंगवश ग्रामसंगठनके विषयमें भी अपनी बात कही।

उन्होंने कहा कि अगर व्यक्तित्वका अर्थ चरित्र है, और मुझे इसमें कोई सन्देह नहीं कि इसका यही अर्थ है तो चरित्रके महत्त्वपर तो किसी भी व्यक्तिसे बोलनको कहा जा सकता है। भर्तृहरिने, जो राजा होनेके साथ-साथ दार्शनिक और कवि भी थे, चरित्रबल की महिमाका सार इन शब्दोंमें बताया है:

'सत्संग मनुष्यको क्या कुछ नहीं बना सकता?[२] व्यक्तिको स्वयं तो चरित्रवान बनना ही चाहिए; किन्तु मैं सार्वजनिक जीवनको पवित्रताको सबसे ऊँचा स्थान देना चाहूँगा, और कहूँगा कि जो देश सार्वजनिक जीवनको पवित्र रखनकी परवाह नहीं करता, उसका विनाश निश्चित है। ग्राम-संगठन ऊपरसे देखनेपर एक सीधा-सादा शब्द जान पड़ता है, लेकिन इसका अर्थ है पूरे भारतको संगठित करना, क्योंकि भारत मुख्यतया गाँवोंका देश है। सर हेनरी मैन प्रामीण समुदायोंके बारेमें एक पुस्तक लिख गये हैं, जिसे सबको अपने पास रखना चाहिए। उन्होंने भारतको और संसारको बताया है कि भारतका वर्तमान ग्रामीण जीवन वही है जो आजसे पाँच हजार वर्ष पूर्व था, लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि भारतीय बर्बर हैं। इसके विपरीत लेखकने स्पष्ट रूपसे दर्शाया है कि भारतके ग्रामीण-जीवनमें इतनी शक्ति और चारित्र्य है कि युगोंसे उसका अस्तित्व बना हुआ है और उसने न जाने कितने तूफान झेल लिये हैं। उन्होंने इन गाँवोंका वर्णन करते हुए उन्हें ऐसे ग्रामतन्त्र कहा है, जो सर्वथा आत्म-निर्भर हैं, जिनके पास वह सब-कुछ है जो कोई चाह सकता है। उनके स्कूल हैं, पंचायत है, सफाईबोर्ड है, और यद्यपि इन गरीबों की सहायताके लिए कोई विशेष कानून नहीं हैं, फिर भी उनके पास अपनी सहायताकी पर्याप्त व्यवस्था है।

 
  1. इस सभा के लिए प्रवेश शुल्क भी रखा गया था, और उससे मिली रकम देशबन्धु स्मारक कोश को दे दी गई। सभा की अध्यक्षता रेवरेंड डों॰ डब्लयू॰ एस॰ युर्गुहर्टने की थी।
  2. 'सत्संगतिः कथय किम् न करोति पुंसाम्।'