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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय


हिन्दू-मुस्लिम एकताके विषयमें पत्र-लेखक महोदयने जैसी सलाह दी है, कुछ वैसी ही बात मेरे भी मनमें आई है। मैं स्वीकार करता हूँ कि पहलेकी तरह मेरे इस विषयपर बोलते रहने से कोई लाभ होनेवाला नहीं है। जो-कुछ कहना चाहता हूँ, उसे मैं अपने कामके द्वारा कहकर ही सन्तुष्ट रहूँगा। जहाँतक स्वराज्य सम्बन्धी घोषणाका प्रश्न है, मैं इस सलाहको पूरी तरह स्वीकार करता हूँ और पाठकोंसे निवेदन करता हूँ कि पत्र-लेखकने जो घोषणा करनेका सुझाव दिया है, उसे वे मेरी ही घोषणा मानें।

सफरी चरखा

ऐसे चरखेकी जरूरत बहुत दिनोंसे महसूस की जा रही थी, जिसे सफरमें ले जाना आसान हो और जिसपर काफी सूत भी काता जा सके, अब खादी प्रतिष्ठानके सफरी चरखेने इस समस्याको हल कर दिया है। मैं उनके सफरी चरखेका उपयोग पिछले तीन महीनोंसे करता रहा हूँ और उसने मुझे पूरा सन्तोष दिया है। जितना सुत मैं साधारण चरखेपर कात सकता है, उतना ही इस चरखपर भी कात लेता हूँ। इसलिए, घर-बाहर सब जगह मैं इसी चरखेका उपयोग करता हूँ। मैंने इसे चलती गाड़ीमें भी चलाकर देखा है। यह प्रचलित चरखेसे हलका है और इसकी रचना-पद्धति वैसी ही है। इसकी सफलताकी कुँजी है, उसे मोड़कर छोटा बनानेकी उसकी सुविधामें। मोड़कर रखनेपर यह एक सुन्दर और हाथमें लटका लेने लायक पेटीकी शक्लमें आ जाता है। और फिर इसे चाहे जहाँ बिना किसी कष्टके ले जाया जा सकता है। बन्द कर देनेपर इसकी लम्बाई, चौड़ाई और मुटाई क्रमशः १६, ६, ६, इंच होती है और वजन ७ पौंड। चक्र इस्पातके पत्थरसे बना है। इसे चढ़ाने और उतारने में सिर्फ दो-तीन मिनट ही लगते हैं। तकुएको सामनेवाले मोढ़ियेपर ताँतके सहारे बाहरकी तरफ नहीं, बल्कि भीतरकी तरफ लगाया जाता है। इससे चरखा चलते समय आवाज नहीं करता और तकुवा अधिक आसानीसे घूमता है। इससे तकुएके टेढ़े होनेका भय भी कम हो जाता है। चमरख धुनकीकी ताँतके टूटे हुए टुकड़ोंसे बनाया जाता है जिससे इसपर कोई खर्च नहीं पड़ता। चमरखके रूपमें प्रयुक्त होनेवाले ताँतके ये टुकड़े इधर-उधर न खिसकें, इसलिए मोढ़ियोंमें चमरखके लिए बनाये गये खाँचोंको ताँत डालने के बाद उपयुक्त मोटाईकी लकड़ीकी खूटियोंसे सख्त कर दिया जाता है। पेटीमें तेलकी कुप्पी, छोटे-मोटे औजार, पूनियाँ आदि रखी जा सकती है। इस चरखेकी कीमत पन्द्रह रुपये है। सतीश बाबूने मुझे सूचित किया है कि वे एक बारमें कुछ ज्यादा चरखे तैयार नहीं कर पाते। मैं यह चीज पाठकोंके ध्यानमें ला