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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय


अगर मिल धनी लोगोंकी थैली भरनेका साधन है तो चरखा आध्यात्मिक दृष्टिसे निश्चय ही उससे श्रेष्ठ है, क्योंकि वह उनकी थैली नहीं भरता, बल्कि करोड़ों भूखे और जरूरतमन्द लोगोंकी जेबमें चार पैसे डालता है।

मैंने बहुत पहले ड्रुमंडकी कृति 'द नेचुरल लॉ इन द स्पिरिचुअल वर्ल्ड' (आध्यात्मिक संसारमें प्राकृतिक नियम') बड़ी रुचिके साथ पढ़ी थी और मुझे पूरा विश्वास है कि अगर मुझमें उस लेखककी तरह सुन्दर ढंगसे लिखनेकी शक्ति होती तो मैं इस तथ्यका प्रतिपादन उससे भी ज्यादा अच्छी तरह कर सकता था कि प्राकृतिक संसारमें भी एक आध्यात्मिक नियम है।

मैंने बहुत समझदार लोगों द्वारा लिखी ऐसी पुस्तकें पढ़ी हैं, जिनमें भूखे और रोगी तथा कमजोर लोगोंकी जातिको बिजलीके मारक-यंत्रके जरिये समाप्त कर देने की वकालत की गई है। यह एक उत्तम आर्थिक उपाय हो सकता यह मानवीय या आध्यात्मिक उपाय नहीं है। चरखके रूपमें मैं अपने देशभाइयोंके सामने एक आध्यात्मिक उपाय प्रस्तुत कर रहा हूँ। यह ऐसा उपाय है, जिससे उनका वह उन्हें शहरी और कारखानोंकी जिन्दगीके बुरे परिणामोंसे बचा सकता है। फिर इस सीधे-सादे यन्त्रका मनपर जो प्रभाव पड़ता है, उसके विषयमें क्या कुछ कहनको जरूरत है? इसको आजमाकर देखनेवाले बहतसे लोग इस बातको साक्षी दे रहे हैं कि इसने उनके उद्भ्रान्त और विकल मनको शान्ति दी है। और महाकवि गटेने तो उसके इस प्रभावको युगोंतक जीवित रहनेवाले गीतमें पिरो दिया है। उन्होंने अपने नाटककी नायिका मारग्रेटको चरखेपर सूत कातते हुए चित्रित किया है। चरखा चलाते हुए वह आह्लादित हो उठती है और उसके होठोंसे वैसा ही निर्दोष गीत फूट पड़ता है जैसा निर्दोष सूत वह चरखेपर कात रही है। मैं आविष्कारोंका विरोध नहीं करता, लेकिन जिस तरह अनुपयुक्त स्थानमें रखी चीजें गन्दगी हैं, उसी तरह अनुचित उद्देश्योंसे किये गये सभी आविष्कार घृणास्पद हैं। आविष्कार यदि मानवीय गरिमाकी रक्षा करने और शान्ति देने में सहायक नहीं हैं, तो त्याज्य हैं।

इसके बाद लोगोंसे प्रश्न पूछने को कहा गया। श्री ए॰ टी॰ वैस्टनने कहा कि श्री गांधीकी बातोंसे मुझे ऐसा लगता है कि कताईके साथ-साथ बुनाई भी जरूरी है। तब फिर बड़े पैमानेपर बुनाईके लिए मिलके बने सूतका प्रयोग क्यों न किया जाये? श्री गांधीने जवाब दिया कि भारतके करोड़ों लोगोंमें से हरएक अपने खाली समयमें कताई कर सकता है, लेकिन वे सब इसी तरह बुनाई नहीं कर सकते। इसीलिए मैंने चरखको सबसे मुख्य माना है।[१]

  1. इसके बादका हिस्सा यंग इंडिया, २७-८-१९२५ में प्रकाशित महादेव देसाईके यात्रा-विवरणसे लिया गया है।