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टिप्पणियाँ

मेरा मुख्य हाथ है। मैं चाहता हूँ कि इस कोषको व्यवस्थाके आधारपर मेरी शक्तिका अन्दाज लगाया जाये। उसके मन्त्री और खजांची जाने-माने जनसेवक है। उसका हेतु तो चरखा और खादीप्रचार है। मैं जितना ही इस देशका भ्रमण करता हूँ, इसे देखता हूँ, मुझे इस चीजकी आवश्यकता उतनी ही अधिक दिखाई देती है। अपने जीवनका शेष भाग मैं इसी काममें लगाना चाहता हूँ। पर ईश्वरको क्या मंजूर है, वह मैं नहीं जानता।

गोरक्षाका कार्य तो करना ही है। यह काम बूतेके बाहरका है। मैं किसी अच्छे मारवाड़ी खजांचीकी खोज में हूँ। मन्त्री-पदके सम्बन्धमें बहुत-से पत्र मेरे पास आये हैं। उनमें से किसी एकको चुनना है। पर अभी तो कोषकी बात ही करूँ। इस कोषके बाद मुझे कोई और कोष इकट्ठा करनेकी तनिक भी इच्छा नहीं है। दस लाख रुपये जमा हों अथवा न हों, इस महीनेके अन्त में बंगालके कोषके लिए धन इकट्ठा करना बन्द कर दिया जायेगा। अखिल भारतीय स्मारककी शुरुआत मैंने बहुत थोड़ी-सी रकमसे जमशेदपुरमें की। पुरुषों द्वारा इकट्ठे किये गये ५,००० बंगाल कोषमें जायेंगे। स्त्रियोंने मुझे जो-कुछ दिया, उसका उपयोग अखिल भारतीय कोषमें किया जायेगा। यह रकम एक हजारसे ऊपर है। ५०० रुपयेसे कुछ ज्यादाकी एक रकम गुजराती भाइयोंकी दी हुई है और ५०० रुपये सिख भाइयोंने भी दिये हैं। ये दोनों रकमें इसी कोषमें जायेंगी। ऐसा करनेका कारण यही है कि जमशेदपुर बिहारमें है। बंगालको जो दस लाख देने है, वह रकम बंगाल तथा अन्य प्रान्तोंमें रहनेवाले बंगालियोंसे मिलनी चाहिए। यदि अन्य प्रान्तोंके भारतीय भाई अपनी इच्छासे इस कोषमें योग देना चाहें तो उसे अस्वीकार नहीं किया जायेगा। लेकिन उसके लिए को आग्रह नहीं किया जायेगा। और जहाँ यह चीज मेरे निर्णयपर छोड़ दी गई हो, वहाँ ऐसी रकम अखिल भारतीय स्मारक कोषको दे देना मेरा धर्म हो जाता है।

[गुजरातीसे]
नवजीवन, १६–८–१९२५
 

४०. टिप्पणियाँ
जमशेदपुरका दौरा

जमशेदपुरका मूल नाम साकची था। यह बिहारमें है। यहाँ लोहेका कारखाना खड़ा करनेकी कल्पना जमशेदजी टाटाके मनमें आई थी और आज यह दुनिया भरमें अधिकसे-अधिक लोहा पैदा करनेवाले स्थानोंमें से एक है। पहले यह एक वीरान जगह थी। लेकिन आज वहाँ एक लाख छः हजार लोग रहते हैं। इनमें बंगाली, बिहारी, सिख, काबुली, पारसी, ईसाई—इस प्रकार सभी कौमों और सम्प्रदायोंके लोग हैं। यहाँ एक नहीं, अनेक कारखाने है। इस सबके निर्माणका श्रेय जमशेदजी टाटाके साहसको है। इसीलिए गवर्नर या वाइसरायने इसका नाम जमशेदपुर रखा। श्रमिक लोग इसे टाटानगरके नामसे भी जानते है।

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