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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

दृढ़ मान्यता है कि इस कोषमें कमसे-कम अव्यवस्था हुई है। यह कहा जा सकता है। कि उसे खर्च करने में पूरी कुशलतासे काम नहीं लिया गया। यह अनिवार्य था। परन्तु जब लोगोंके किसी संघकी मार्फत पहले-पहल इतनी मोटी रकमके उपयोगका मौका आता है तब सामान्यतया कुशलताकी जो कमी दिखाई देती है, उसकी तुलनामें तो यह कम ही थी। इसका कारण कांग्रेसके मन्त्री और खजांचीका सतत सजग रहना था। जितनी रकम किसी व्यापारीकी पेढ़ीमें बट्टे खातेमें डाल दी जाती है, इस कोषमें उतना नुकसान भी नहीं हुआ। एक सामान्य पेढ़ी भी दस प्रतिशत बढ़ेंखातेमें डालती है। दक्षिण आफ्रिकामें बहुत-से बड़े-बड़े व्यापारियोंको तो मैंने २५ प्रतिशत तक बट्टेखातेमें डालते देखा है। कांग्रेसका तो एक प्रतिशत भी शायद ही बट्टेखाते में गया हो। ऐसा कहने में मेरी भूल हो सकती है। यह एक प्रतिशतके बजाय दो प्रतिशत हो सकता है, पर दस प्रतिशत तो किसी हालतमें नहीं। पाठकोंको मालूम होना चाहिए कि कोषकी यह रकम अभी निःशेष नहीं हुई है। इस कोषमें से हमने लाखों रुपयेका खादी-व्यापार किया है, इस कोषमें से बम्बईमें एक मकान खरीदा गया है। इस कोषसे हजारों चरखे चलाये गये हैं, तथा भारतवर्ष-भरमें आज भी जो राष्ट्रीय पाठशालाएँ हैं, वे इसी कोषकी रकमसे चलाई जाती हैं। कोषकी एक भी पाई विदेशमें खर्च नहीं की गई। कोषोंमें पढ़ियार[१]-कोष भी उल्लेखनीय है। यद्यपि उसकी रकम बहुत छोटी है। उसके उपयोगके विषयमें मतभेद हो सकता है। पर उसके पैसेकी जाँच मैने की थी। मैं इतना जानता हूँ कि उसमें से एक भी रुपयेका दुरुपयोग नहीं हुआ, तथा उसका पैसा सच्चे-ईमानदार लोगोंके हाथोंमें है।

पिछले वर्ष मलाबारके संकटके निवारणार्थ मुझे पाठकोंने काफी धन दिया था।[२] उसमें से जितने धनका उपयोग किया गया, उसका विगतवार हिसाब दक्षिण भारतके पत्रोंमें प्रकाशित किया गया है। अब भी उसमें से कुछ रकम मेरे पास बैंकमें पड़ी हुई है। मैं यहाँ उसके आँकड़े नहीं दे सकता। इस रकमका सदुपयोग कहाँ किया जा सकता है सो मैं सोच रहा हूँ। मेरी जानमें तो उसमें से एक कौड़ीकी भी बर्बादी नहीं हुई है।

अब बंगालके देशबन्धु स्मारक कोषको लें। बंगालके अच्छेसे-अच्छे व्यक्ति उसके न्यासी है।[३] सारा प्रबन्ध सात व्यक्तियोंके हाथमें है। इस कोषकी धनराशिसे दो लाख रुपयेका कर्ज चुकाया गया; और इससे जनताको तीन लाख रुपयेकी कीमतका एक बड़ा मकान मिला। उस मकान में शीघ्र ही एक अस्पताल खोलनेकी तजवीज चल रही है। इस कार्यका संचालन यहाँके प्रसिद्ध डाक्टर विधान [चन्द्र] राय कर रहे हैं। इसलिए मेरा विश्वास है कि इस कोषका उपयोग जैसा हम सोचते हैं, उसी तरहसे होगा।

और अन्त में अखिल भारतीय देशबन्धु स्मारक कोषको लीजिए। कोषका अध्यक्ष होनेके नाते अभी तो उसकी जवाबदेही मेरे ऊपर ही है। उसके न्यासियोंको चुनने में

  1. सुन्दरजी पढ़ियार; गांधीजीकी प्रसंशाके पात्र एक गुजराती लेखक।
  2. देखिए खण्ड २५, पृष्ठ २–४।
  3. देखिए "सार्वजनिक निधियाँ", २–८–१९२५।