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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय


जितना समय है, उतने में मैं जितने प्रान्तोंका दौरा कर सकता हूँ, अगर उससे ज्यादा प्रान्त मेरी उपस्थिति चाहते हों तो मैं इसका निर्णय लाटरी डालकर करना चाहता हूँ। इसलिए अगर तनिक भी सम्भव हो तो मैं आपसे अनुरोध करता हूँ कि आप मुझे वहाँका दौरा रद कर देनेकी इजाजत दें।

मैं इस महीनेकी ३१ तारीखतक कलकत्तमें हूँ। मैं चाहूँगा कि आप इससे। पत्र अथवा तार द्वारा उत्तर भेज दें।

हृदयसे आपका,
मो॰ क॰ गांधी

श्रीयुत साम्बमूर्ति
अध्यक्ष, प्रान्तीय कांग्रेस कमेटी, राजमहेन्द्री

अंग्रेजी पत्र (एस॰ एन॰ १०६५१) की माइक्रोफिल्मसे।

 

३७. भाषण : कलकत्ताकी सार्वजनिक सभामें[१]

१५ अगस्त, १९२५

कलकत्तेके नागरिकोंकी यह सभा, जो सभी दलों और सभी जातियोंका प्रतिनिधित्व करती है, भारतीय राष्ट्रीयताके महान् पुरोधा सर सुरेन्द्रनाथ बनर्जीके निधनसे देशकी जो भारी और स्थायी क्षति हुई है, उसपर अपना गहरा दुःख प्रकट करती है। पिछले पचास वर्षोंसे वे मातृभूमिके लिए अडिग भावसे निरन्तर और अत्यन्त उत्साहपूर्वक जो श्रम करते रहे, वह सत्प्रयत्नों और उच्च उपलब्धियोंकी एक ऐसी अद्वितीय गाथा है, जिसे उनके कृतज्ञ देशवासी सदा याद रखेंगे और जिससे यह राष्ट्र जिसकी सेवामें उन्होंने अपना जीवन अर्पित किया, सदा प्रेरणा ग्रहण करता रहेगा।. . . .यह सभा उनकी पुण्य-स्मृतिमें अपनी श्रद्धांजलि अर्पित करती है और उनके शोक-सन्तप्त परिवारके प्रति गहरी समवेदना प्रकट करती है।

महात्माजीन कहा :

इस सभामें उपस्थित होना और इस प्रस्तावको पेश करना में अपने लिए गौरवको बात मानता हूँ। मैं जानता हूँ कि आप लोग यह नहीं चाहते कि मैं उनकी प्रशस्तिमें कोई लम्बा-चौड़ा भाषण दूँ। सर सुरेन्द्रनाथ आपके लिए क्या थे और देशके लिए उनका क्या महत्त्व था, यह बात प्रस्तावमें संक्षेपमें बता दी गई है। अभी हालमें मुझे कई मंचोंसे आपको यह चेतावनी देनी पड़ी है कि हमें किसीकी केवल मौखिक प्रशंसा करके ही सन्तुष्ट नहीं हो जाना चाहिए। एक सभामें तो मैंने यहाँ तक कहा था कि "हमें भाटों-जैसा व्यवहार नहीं करना चाहिए।" सन् १८९६ में

 
  1. यह सभा स्वर्गीय सर सुरेन्द्रनाथ बनर्जीको श्रद्धांजलि अर्पित करनेके लिए टाउन हॉलमें की गई थी।