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फिर वही

उठाये गये आन्दोलनका नेतृत्व किया था, उन्होंने वे कोई भी और कैसे भी क्यों न रहे हों, निस्सन्देह लोगोंके मनसे अंग्रेज लोगोंका डर दूर कर दिया था। यह देशकी स्पष्ट सेवा थी। परन्तु वीरता और आत्मत्यागका अर्थ किसीको मार डालना नहीं है। ये क्रान्तिकारी महाशय याद रखें कि 'हिन्द स्वराज्य' नामक पुस्तिका, जैसा कि उस पुस्तिकासे स्पष्ट है, लिखी गई थी एक क्रान्तिकारीकी ही दलीलों और तरीकोंके उत्तरमें। पुस्तक लिखनेका अभिप्राय यह था कि क्रान्तिकारियोंको उस चीजसे जो उनके पास है, कहीं अधिक उत्तम वस्तु दी जाये, और जिससे उनके अन्दरकी तमाम वीरता और आत्मत्यागके भाव भी बने रहें। मैं क्रान्तिकारियोंको केवल इसलिए अज्ञानी नहीं कहता कि वे मेरे साधनोंको नहीं समझते या उनकी कदर नहीं करते; बल्कि इसलिए कि वे मुझे युद्ध-कलाके ज्ञाता भी प्रतीत नहीं होते। जिन-जिन वीरोंका उल्लेख उन्होंने किया है वे युद्ध-कलाका ज्ञान रखते थे और उनके पास अपने आदमी भी थे।

दूसरा प्रश्न यह है—

क्या टेरेंस मैक्स्विनी जिसने ७१ दिनका उपवास करके प्राण त्यागे, हिंसा षड्यन्त्रादिसे नितान्त अनभिज्ञ कोई भोलाभाला व्यक्ति था? वह अन्ततक गुप्त षड्यन्त्रों, खूँरेजी और आतंकवादका हामी रहा और अपने प्रसिद्ध ग्रन्थ 'स्वतन्त्रताके सिद्धान्त' में लिखित विचारोंका प्रतिपादन करता रहा। यदि आप मैक्विनीको भोलाभाला और स्वच्छ मतिवाला व्यक्ति कह सकते हैं तो क्या गोपीमोहन साहाके[१] लिए भी उन्हीं शब्दों का प्रयोग करने को तैयार न होंगे?

खेद है कि मैं मैक्स्विनीका जीवन चरित्र इतना नहीं जानता कि कोई राय दे सकूँ। पर यदि उसने गुप्त षड्यन्त्र, खूंरेजी और आतंकवादकी हिमायत की हो तो उसके साधनोंपर भी वही आक्षेप किये जा सकते हैं जो मैं इन पृष्ठोंमें कर चुका हूँ। मैंने उन्हें कभी भोलाभाला और पाक-साफ नहीं माना। जब उनके उपवासकी बात प्रकाशित हुई थी, तभी मैंने उसपर अपनी यह राय प्रकट की थी कि मेरी दृष्टिमें उनकी यह भूल थी। मैं हर प्रकारके उपवासका समर्थन नहीं करता। तीसरा सवाल इस प्रकार है—

आप वर्ण-व्यवस्थाको मानते हैं। इसलिए यह स्वयंसिद्ध है कि आप क्षत्रियों को भी अन्य वर्णोंकी तरह उपयोगी मानते हैं। इस निःक्षत्रिय युगमें, भारतवर्ष में क्रान्तिकारी लोग क्षत्रिय होने का दावा करते हैं। 'क्षतात् त्रायते इति क्षत्रियः'। मैं भारतको आज अभूतपूर्व क्षतको अवस्थामें देखता हूँ और इसलिए वह समय आ गया है जब देशको क्षत्रियोंकी अत्यन्त आवश्यकता है। महान स्मृतिकार मनु महाराजने क्षत्रियोंके लिए चार साधनोंकी व्यवस्था की है—साम, दाम, दण्ड, भेद। इस सम्बन्ध में में स्वामी विवेकानन्दके ग्रन्थसे
  1. 'गोपीनाथ साहा' होना चाहिए; देखिए खण्ड २४, पृष्ठ २०५-६।
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