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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

हमने अपनेको साम्राज्यमें 'पैरिया' बना दिया है तो मेरा मतलब यही है और यदि हम समयपर सचेत होकर इस अभिशापसे मुक्त नहीं होते तो हिन्दू-धर्म संसारसे मिट जायेगा।

साहब, मैं जानता हूँ आपने यह कई बार कहा है और प्रत्येक व्यक्ति वैसा महसूस भी करता है। परन्तु अस्पृश्यता इतने लम्बे समयसे चली आ रही है। अब इसका कैसे उन्मूलन होगा?

क्यों? क्या भारतके कुछ भागोंमें मानव-भक्षण और सतीकी प्रथाएँ नहीं थीं? क्या आप सोचते है कि यदि वे प्रथाएँ कायम रहती तो हिन्दूधर्म उनको सहन कर सकता था? उन्हें तो मिटना ही था। विचारशील लोगोंने इन भयावह प्रथाओंके विरुद्ध विद्रोह किया और अब अस्पृश्यताकी भयावहताके विरुद्ध सभी स्थानोंपर लोगोंकी चेतना जाग्रत हो गई है। इसलिए यह भी निश्चित रूपसे मिट जायेगी। हममें से प्रत्येकमें यह चेतना जाग्रत होती जा रही है कि हिन्दू-धर्म आज कसौटीपर है। और यदि इसे उसपर खरा उतरना है तो यह जरूरी है कि वह अपने-आपको इस अभि- शापसे मुक्त कर ले।

तब आपका विचार है कि हम कांग्रेसमें शामिल हो जायें?

आपको होना चाहिए और राष्ट्रीय कार्यक्रममें जितना आपसे हो सके, सहायता दें। राष्ट्रीय कार्योंमें लग जायें; चरखेको अपनायें, खद्दर पहनें, और अपनेको शुद्ध बनायें। और सबसे बड़ी बात तो यह कि चरित्रको आन्तरिक शक्ति और उसके महात्म्यको भलीभांति समझें। आपका चरित्र ही अन्ततोगत्वा आपके कामका परिणाम निश्चित करेगा।

सब लोगोंने जाने की इजाजत मांगते हुए कहा कि हम सचमुच आपके अत्यन्त आभारी हैं और आपके सुझावोंपर अमल करनेका प्रयत्न करेंगे। कृपया इतनी रात-तक कष्ट देने के लिए आप हमें क्षमा करें। गांधीजीने अत्यन्त नम्रताके साथ कहा :

नहीं, आपके साथका यह वार्तालाप मेरे लिए अत्यन्त आनन्ददायक रहा। अगर ऐसा नहीं होता तो मैं इतने विस्तारपूर्वक आपके साथ बात न करता।

[अंग्रेजीसे]

यंग इंडिया, १४-५-१९२५