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पत्र : चक्रवर्ती राजगोपालाचारीको

हाँ, जल-ग्रहण करनेके विषयमें मुझे कुछ कहना है। यदि हम शूद्रके हाथसे स्वच्छ जल ग्रहण करें; हम करते भी हैं और हमें करना भी चाहिए तो फिर हम अस्पृश्यके हाथसे भी स्वीकार करें। मैं तो चार वर्ण ही मानता हूँ। अस्पृश्य-जैसा कोई पाँचवाँ वर्ण ही नहीं है। इसलिए हम अस्पृश्यताको मिटाकर अस्पृश्य माने जानेवाले हिन्दुओंका दुःख दूर करें, हिन्दू धर्मकी शुद्धि करें और शुद्ध बनें। दूसरे शब्दोंमें इस बातको कहूँ तो निन्दा और घृणाके लिए किसी धर्ममें स्थान नहीं है। अस्पृश्यतामें घृणाभाव है। इस घृणाभावको हम मिटा दें। हिन्दू धर्म सेवाधर्म है। अस्पृश्य कहे जानेवाले लोगों को हम सेवासे वंचित क्यों रखें?

हिन्दी नवजीवन, १६-७-१९२५
 

२३९. पत्र : चक्रवर्ती राजगोपालाचारीको

१६ जुलाई, १९२५

प्रिय च॰ राजगोपालाचारी,

चाहे जो हो, मुझे आपकी कुशलताका पत्र तो मिलते ही रहना चाहिए। इस समय मेरी मनःस्थिति ऐसी ही है। शारीरिक और बौद्धिक तौरसे मैं जिस वातावरणमें रहता हूँ, मुझपर उसका बिलकुल असर नहीं पड़ता; पर वहाँ मेरी परीक्षा तो होती ही रहती है। मेरी आत्मा जिस संसारमें रहती है वह भौतिक दृष्टिसे मुझसे दूर है; पर उसका मुझपर असर पड़ता है और मैं चाहता हूँ कि असर पड़े भी। आप उसी संसारमें रहते हैं; और शायद मेरे सबसे नजदीक हैं। मेरी यह आन्तरिक इच्छा है कि जो-कुछ भी मैं करता हूँ या सोचता हूँ, उसपर आपकी स्वीकृतिकी मुहर हो। हो सकता है कि मैं हर बातमें आपकी स्वीकृति न पा सकूँ; पर आपका निर्णय जाननेकी अभिलाषा मुझे अवश्य रहती है।

अब आप समझ गये होंगे कि दूसरे बहुत-से कारणोंके अतिरिक्त मैं आपके पत्रकी किसलिए प्रतीक्षा करता रहता हूँ। आप मुझे हर सप्ताह, पोस्टकार्ड ही क्यों न हो, पत्र अवश्य लिखें। महादेव, देवदास, प्यारेलाल आपको अपने पत्रों द्वारा यहाँकी गति-विधियोंसे अवगत कराते रहेंगे।

आपको अपने स्वास्थ्यका ध्यान रखना चाहिए।

आपकी साधना इसीमें है कि आप अपने क्षेत्रका विकास करें तथा हाथ-कताईके अपने सिद्धान्तको व्यवहारिक रूप दें। यदि अन्तमें यह व्यावहारिक सिद्ध न हो तो भी इससे हमारी और संसारकी कोई हानि नहीं होगी क्योंकि मैं जानता हूँ कि इस कार्यक्रममें हमारा पूर्ण विश्वास है। यदि इसमें कोई सहज खराबी नहीं है तो हाथ-कताईका हमारा सिद्धान्त तभी व्यावहारिक माना जा सकता है जब भारतके असंख्य गाँवोंमें, घरोंमें खाना बनाने शके समान ही, बिना किसी संरक्षणके हाथ-कताई और खादी अपने पैर जमा लेंगी।