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१८१. तीन सवाल

एक सज्जनने बारीसालमें मुझसे तीन सवाल पूछे थे। उनको उत्तर सहित नीचे दे रहा हूँ :

१. क्या हमारी 'पतित बहनें' जिला या प्रान्तीय सम्मेलनों तथा अन्य प्रातिनिधिक मण्डलोंके लिए प्रतिनिधि चुनी जा सकती हैं? यदि नहीं तो फिर ये प्रतिनिधिके रूपमें बारीसालसे पिरोजपुर और जैसोरके सम्मेलनोंमें कैसे भेजी गईं?

कांग्रेसके मौजूदा विधानके अनुसार एक चरित्रहीन व्यक्ति भी, यदि उसे चुनकर भेजनेवाले मतदाता मिल जायें, कांग्रेसका प्रतिनिधि बननेका अधिकारी है। परन्तु वे सदस्य जो पतित बहनोंको, उन्हें उस रूपमें जानते हुए और उनके द्वारा उस पापमय धन्धेका त्याग न होनेपर भी चुनते हैं, मेरे नजदीक बहुत अच्छे आदमी नहीं हैं। जिन सम्मेलनोंका जिक्र किया गया है, उनकी मुझे कोई जानकारी नहीं।

२. यदि कोई एक व्यक्ति या सुसंगठित मण्डल कांग्रेसका रुपया खा जाये या रसीद बुकें, बही-खाते आदि और जिला कांग्रेस कमेटीके रुपये तथा अन्य सम्पत्ति, नयी चुनी कार्य-समितिको, जिसे कि बंगाल प्रान्तीय कांग्रेस कमेटी विधिवत् मान्यता दे चुकी है, न दे तो रुपये-पैसे वसूल करने तथा किताबें और कांग्रेसकी अन्य सम्पत्ति प्राप्त करनेके लिए क्या कार्रवाई करनी चाहिए?

यद्यपि मैं अब भी एक दृढ़ असहयोगी हूँ तो भी यदि मेरी मिन्नत- खुशामदसे काम न निकला तो मैं उसपर दीवानी या फौजदारी दावा करनेमें न हिचकूँगा——फिर वह चाहे मेरा पिता या पुत्र ही क्यों न हो। कांग्रेसका विधान और प्रस्ताव उसके उद्देश्यको विफल करनेके लिए नहीं हैं।

३. जो हिन्दुस्तानी और यूरोपीय लोग, जिनमें सरकारी उच्च अधिकारी भी शामिल हैं, अबतक आपके लोकोपकारी कार्यके विरोधी रहे हैं, अब भी हैं और जो आपकी पिछली बंगाल-यात्राके समय जिन समारोहोंमें आप जाते थे, शरीक नहीं होते थे और होते भी थे तो बाधा डालने के लिए हो, वे ही अब आपके स्वागतमें इतना उत्साह क्यों दिखा रहे हैं? आपको समझमें इसका कारण क्या है? क्या ऐसा माननेका कोई कारण है कि उन लोगोंमें अब अहिंसात्मक असहयोगकी उच्च भावना पैदा हो गई है या इससे यह साबित होता है कि देशके सबसे बड़े राजनीतिक नेताके रूपमें आपकी शक्ति यदि बिल्कुल नष्ट नहीं हो गई तो क्षीण अवश्य होती जा रही है?

मुझे पता नहीं कि सरकारने मेरे पिछले बंगालके दौरेके समय क्या-क्या बाधायें डाली थीं। परन्तु यदि सरकारी कर्मचारी आज मेरे स्वागतमें उत्साह दिखा रहे हैं——तो पत्रलेखक उक्त अनुमान निकालनेके लिए स्वतन्त्र हैं। मैं आशा करता हूँ कि पत्रलेखक महोदय स्वयं उस गलतीके शिकार न बनेंगे, जिसके शिकार उनके खयालके

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