पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 26.pdf/५६८

यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
५३८
सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

मेरे विचारमें राष्ट्रीय झण्डेको सलामी देना आपत्तिजनक नहीं है। मैं इसमें स्वतः कोई बुराई नहीं देखता। राष्ट्रीय अस्तित्वके लिए राष्ट्रीय भावना आवश्यक है। इस प्रकारकी भावनाको विकसित करने में झण्डेसे काफी मदद मिलती है।

मेरे विचारमें विश्वविद्यालयोंमें दिया जानेवाला सैनिक प्रशिक्षण अपरिहार्य है। मैं नहीं समझता कि भारत जोर-जबरदस्ती सहन करेगा। मैं ऐसी उम्मीद नहीं करता कि हमारी वर्तमान पीढ़ीमें ही युद्धकी भावनाका पूर्णत: अन्त हो जायेगा, अर्थात् मैं तो समझता हूँ कि डाकुओं और आक्रमणकारियोंको सजा देनेकी भावनातक का लोप हो जाना सम्भव नहीं है। मेरा लक्ष्य इतना ही है कि अहिंसा द्वारा राष्ट्रीय आजादी प्राप्त की जाये और यदि सम्भव हो सके तो उसके स्वाभाविक या आवश्यक परिणामके रूपमें राष्ट्रोंके बीच होनेवाले युद्ध बन्द हो जायें। इससे आगे बढ़कर कुछ कहने लायक हिम्मत मैं अपने अन्दर नहीं पाता।

मैं सन्तति-नियमनके बारेमें हॉलैंडके आँकड़े और वहाँकी परिस्थिति जानना पसन्द करूँगा। किन्तु यह मान लेनेपर भी कि जो आँकड़े दिये गये हैं वे, बिलकुल ठीक हैं, जो शंकाएँ मैंने उठाई है उनका समाधान उनसे नहीं होता। भोग-विलासको यदि सद्गुण या आवश्यकता भी मान लिया जाये, तो उससे विवाहके बन्धनमें धीरेधीरे ढिलाई अवश्यम्भावी है। या फिर हमें विवाहके सम्बन्धमें अपने विचार कुछ इस ढंगसे बदलने पड़ें तो फिर उसमें शरीर-सम्बन्धकी विशुद्धताका कोई खयाल ही नहीं रह जायेगा। और मैंने सन्तति-नियमनके हिमायतियोंको यह कहते सुना है कि शरीर-सम्बन्धकी विशुद्धता कोई सद्गुण है ही नहीं। मेरा अपना खयाल तो यह है कि यदि मुझे भोग-विलासको भी एक सद्गुण ही मान लेना पड़े, तो फिर यह मेरी समझमें नहीं आता कि हम उसके इस सहज निष्कर्षसे भी कैसे इनकार कर सकते हैं कि मुक्त प्रेम भी एक सद्गुण ही है। मेरे सामने यही कठिनाई है। मैंने कभी सोचा भी नहीं था कि कृत्रिम साधनोंसे सन्तति-नियमन करनेका विचार भारतीय तरुणोंके दिमागोंपर इस कदर छा गया है।

आशा है कि फरीदपुरमें तुमसे मिलूँगा।

सस्नेह,

तुम्हारा,
मोहन

[पुनश्च :]

मुझे तुम्हारा तार मिल गया है। हाँ, हल्का-सा मलेरिया जरूर हो गया था। पर खास कुछ नहीं था। बुखार आनेके बाद मैंने ३० ग्रेन कुनैन ले ली है। चिन्ताकी कोई बात नहीं। मैंने तार द्वारा उत्तर दे दिया है। सस्नेह।

मोहन

अंग्रेजी पत्र (जी० एन० ९६४) की फोटो-नकलसे।