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कोहाटके दंगोंके बारेमें अहमद गुलसे जिरह

उन्होंने उत्तर दिया, "सरकार हमारी धार्मिक भावनाका खयाल नहीं करती। हम उन लोगों को भी खिलाफत करते हैं जिन्होंने जीवनदासको रिहा करनेकी सलाह दी है।" यह आरोप मेरे कुछ दोस्तोंके खिलाफ भी लगाया गया था। मैंने इसका प्रतिवाद किया और मजमेको सलाह दी कि हम ९ सितम्बरको डिप्टी कमिश्नरके पास जायें और उनसे पूछे कि उन्होंने जीवनदासको समयसे पहले रिहा करने में क्या फायदा समझा। इसके बाद मैंने लोगोंको अपने-अपने घर जाने के लिए कहा और वे चले गये। जब वे गये तब साढ़े दस या ग्यारह बजे थे। हमने कुछ समय नमाज पढ़ने में भी लगाया।

प्रश्न: क्या मजमेमें बहुत अधिक उत्तेजना थी?

उत्तर: हाँ।

प्रश्न: आपने कहा है कि लोग इतने गुस्सेमें थे कि उन्होंने आपकी बात नहीं सुनी और इसके बाद आपने फिर कहा है कि आपने उनके साथ जिरह की और उन्हें समझा दिया कि उनके साथ न्याय किया जायेगा। आपने यह भी कहा कि "अगर हम नाकामयाब रहे तो आप जो चाहे कर सकते हैं।"

उत्तर: हाँ। एक बार हिन्दुओंने मुसलमानोंका बहिष्कार किया था और उनसे साग और मांस खरीदना बन्द कर दिया था। इसपर मैंने हिन्दुओंकी दुकानोंपर धरनेदार बैठा दिये थे और दो दिनतक धरना दिलाया था; जिसका नतीजा यह निकला था कि हिन्दू हलवाइयोंकी मिठाइयाँ बिना बिकी रह गई थीं। यह बात दो साल पहलेकी है। तब मैंने वस्तुतः हिन्दुओंका बहिष्कार किया था। अगर हिन्दू अपना यह रुख न बदलते तो मैं मुसलमानोंसे यही तरीका अपनानेकी सिफारिश करता।

प्रश्न: क्या मुसलमानोंने जलसे में बहिष्कार करनेकी शपथ ली थी?

उत्तर: यह सरासर गलत है।

प्रश्न: क्या वहाँ आग लगाने और लूटमार करनेके बारे में बात नहीं चली थी?

उत्तर: बिलकुल नहीं।

प्रश्न: ९ सितम्बरको क्या हुआ था?

उत्तर: मैं टाउन हालके पासके मैदान में लोगोंके साथ डिप्टी कमिश्नरके पास गया था।

प्रश्न: आपके साथ जानेवाले लोगोंकी संख्या क्या थी?

उत्तर: करीब २,०००।

प्रश्न: क्या भीड़में गाँवोंके लोग भी थे?

उत्तर: नगरपालिकाकी हदके अन्दरके गाँवके लोग थे।

प्रश्न: क्या दूरकी जगहोंके लोग नहीं थे?

उत्तर: उसमें बहुत दूरकी जगहके लोग नहीं थे।