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हो कि भारतीय स्त्रियों और पुरुषोंपर लांछन लगाये जायें, तो उनको बिना शर्त अपने आरोप वापस लेकर माफी माँग लेनी चाहिए। ऐसा करके वे अपनी प्रतिष्ठा और गौरवकी वृद्धि ही करेंगे। इसके विपरीत, अगर उनके पास वैसे सबूत हों, जैसे कि मैंने सुझाये हैं, तो उन्हें हिम्मतके साथ अपने आरोपोंकी पुष्टि करनी चाहिए और जन-साधारणके सामने वे सबूत उपस्थित कर देने चाहिए। लचर किस्मकी सफाई कोई सफाई नहीं होती। वह तो जलेपर नमक छिड़कना होता है।

अधीनताका बिल्ला

भारतका हरएक पत्रकार इस बातको जानता है कि जब बाहरसे आयात होनेवाले सूती कपड़ेपर चुंगी लगाई गई, तब सिर्फ लंकाशायरके हितके लिए भारतके बने कपड़ेपर उत्पादन कर लगा दिया गया था। उसके खिलाफ विरोधकी आवाजें उठाई गई और इस बातका वचन भी दिया गया कि इसपर फिरसे विचार किया जायेगा। फिर भी वह आजतक ज्योंका-त्यों कायम है। यह कर हमें निरन्तर इस बातकी याद दिलाता रहता है कि भारतका हित इंग्लैंडके हितके अधीन है--उसके आगे गौण है। इसलिए में विदेशी मिलोंके मुकाबले हिन्दुस्तानी मिलोंके कपड़ेको तरजीह देता हूँ। पर कितने ही लोग इससे चक्कर में पड़ जाते हैं। वे उसका आशय ठीक-ठीक नहीं समझ पाते, क्योंकि एक ओर तो मैं मिलके कपड़ेके मुकाबले हाथके बने कपड़ेकी सिफारिश जोर-शोरसे ---लगभग आवेशपूर्वक---करता हूँ और दूसरी ओर विदेशी कपड़ेके मुकाबले देशी मिलके बने कपड़ेकी रक्षाकी आवाज उठाता हूँ। पर जरा गौर करनेसे ही उन्हें ये दोनों नीतियाँ परस्पर सुसंगत लगने लगेंगी। यदि भारतवर्षको आर्थिक रूपसे एक स्वाधीन राष्ट्र बनना हो, यदि उसके किसानोंकी सदियों पुरानी फाकेकशी मिटानी हो, यदि उन्हें अकालों और ऐसे ही दूसरे संकटोंके समय कोई प्रतिष्ठित काम दरकार हो तो देशसे विदेशी कपड़ेका मुँह काला किये बिना चारा नहीं। अपने कपड़ा उद्योगकी रक्षा करना उसका जन्म-सिद्ध अधिकार है। अतएव मैं विदेशी मिलोंकी होड़से भारतीय मिलोंकी रक्षा जरूर करूँगा---भले ही उसका फल यह होता हो कि चन्द रोजके लिए गरीबोंको दण्ड भुगतना पड़े। ऐसा दण्ड उन्हें तभी भुगतना पड़ेगा जबकि मिल-मालिक देश-प्रेमको इतना खो बैठे हों कि कपड़ेका बाजार पूरी तरह अपने हाथमें आ जानेपर वे उसके दाम बढ़ा दें। इसलिए मैं कपास तथा भारतके कपड़ेपर लगे उत्पादन-करको हटाने और आयातपर भारी चुंगी लगानेके लिए बिना हिचकिचाहटके जोर दे सकता हूँ।

इसी तरह और बिना किसी प्रकारकी असंगतिके, मैं देशी मिलोंके मुकाबले हाथ-कती खादीकी रक्षा करूँगा। मैं जानता हूँ कि यदि सिर्फ विदेशोंके साथ होड़ा-होड़ी बन्द हो जाये तो खादीकी रक्षा बिना दिक्कत हो सकती है। ज्यों ही लोकमत इतना प्रबल हुआ कि उसका प्रभाव पड़ सके, त्यों ही यहाँसे विदेशी कपड़ेका मुँह काला हो जायेगा और वही शक्ति मिलोंके मुकाबलेमें खादीकी रक्षा करेगी। पर मुझे तो यह दृढ़ विश्वास है कि खादी तो मिलोंसे बिना किसी अशोभन टकरावके ही अपने पैर जमा लेगी। परन्तु यह जरूरी बात है कि जबतक खादीके भक्तों की