२८. पत्र: घनश्यामदास बिड़लाको
श्रावण कृष्ण ११ [२५ अगस्त, १९२४]
भाईश्री घनश्यामदासजी,
आपका पत्र मीला है। पिताजीकी तबीयत अब अच्छी होगी। पं० सुंदरलालजीके लीये जो कुछ में लीख सकता था मेंने लीखा।[१]
हिंदु-मुसलमान झगडे़का काम दिन-प्रति-दिन कठिनतर होता जाता है। मेरी सूचना आप चाहते हैं उसीकी बुनियाद है। यदि दिल्लीके झगडे़की अच्छी तरहसे तेहकीकात हो सके तो उसपर से ज्यादा काम हो सकता है। मैं बिलकुल मानता हं कि आखरमें कई नेताओंको अपना शरीरका बलीदान देना पड़ेगा।
आपका,
मोहनदास
कलकत्ता
मूल पत्र (सी० डब्ल्यू० ६०३४) से।
सौजन्य: घनश्यामदास बिड़ला
२९. भाषण: अहमदाबाद नगरपालिकाके अभिनन्दनके उत्तर में[२]
[२६ अगस्त, १९२४][३]
आपने जो यह सुन्दर अभिनन्दन-पत्र मुझे दिया है उसके लिए मैं आपको धन्यवाद देता हूँ। पर मैं बड़े दुःखके साथ महसूस करता हूँ कि मैं अहमदाबादके नागरिककी हैसियतसे इसके योग्य कदापि नहीं हूँ। यह मत समझिए कि मैं अनावश्यक शिष्टता या झूठे संकोचवश ऐसा कह रहा हूँ। किसी नगरकी नगरपालिकाकी ओरसे अभिनन्दन-पत्र पानेका अधिकारी वही नागरिक हो सकता है जिसने उस नगरकी खास सेवा की हो। मैंने अहमदाबादकी ऐसी कोई सेवा नहीं की। मेरा खयाल है कि मेरी जिन सेवाओंके उपलक्ष्यमें आपने यह अभिनन्दन-पत्र दिया है, उसको देनेकी आपको बिलकुल जरूरत न थी। पर एक तो आपमें से बहुतेरे सज्जन दूसरे क्षेत्रमें